Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 343
________________ एगुणवीसमो संधि घत्ता-मुनिवरके चरणोंकी वन्दना कर, अंजना अपना मुँह पोछती हुई निवेदन करती है, "मैंने अन्यभवमें ऐमा कौनसा पाप किया, जिससे दुखका अनुभव कर रही हूँ" ॥१॥ [७] तब वसन्तमाला बोली, "यह तेरा नहीं, यह सब फल तेरे गर्भका है ?" यह सुनकर वीतराग मुनि कहते हैं-.-"यह गर्भका दोष नहीं है ।" यति घोषणा करते हैं, "यह चरम शरीरी और युद्ध विजय प्राप्त करनेवाला हूँ। तुमने पूर्वजन्ममें अपने हाथसे सौतकी ईयाके कारण जिनप्रतिमाको फेंका था, उसी कारण इस दुखको प्राप्त हुई। अब तुम्हें समस्त सुख प्राप्त होगा।" यह कहकर अमितगति वहाँसे चले गये। इसी बीच में वहाँ एक सिंह आया, शरीर हिलाता हुआ, और दूरसे ही पैरोको उठाये हुए, जैसे शनि, वन या यम हो । जिसके दख गजोंके शिरोंके रखूनसे लाल है, जिसकी अयाल भी रक्तरंजित है, जिसका मुख्य अति विकट दाहोंके कारण खुला हुआ है, जिसके नेत्र लाल कमल और गुंजाफलके समान लाल है, जिसकी वाणी प्रलयसमुद्र के समान गम्भीर है, जो पूंछके दण्डसे अपने सिरको खुजला रहा है ।।१-१०॥ पत्ता-से उस सिंहको देखकर अंजना मूञ्छित होकर धरतीपर गिर पड़ी। तब विद्याके बलसे आकाशमें जाकर वसन्तमाला जोर-जोरसे चिल्लायो ||११|| [८] "हा समीर पवनंजय, अनिल प्रभंजन! अंजना इस समय सिंहरूपी यमकी दाढ़ोंके भीतर है। हा, केतुमतीने यह कौन-सा काम किया। उसने इसे छोड़ा है, वह कौन-सी गति प्राप्त करेगी ? हा तात महेन्द्र, सिंहको पकड़ो,मुरसनकीर्ति, तुम रक्षा करो, हा माँ, तुम भी सान्त्वना नहीं देती। तुम्हार। कन्या मूञ्छित है, उठाओ इसे | अरे गन्धर्वो, देवदानवो विद्याधरो,

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