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पामो संधि
शरीर कमलोंके समान ।” राजाके यह पचन सुनकर मन्त्रियोंने प्रच्छन्न उक्तियोंसे बताते हुए कहा, "हे राजन् , अपने कुलके प्रदीप वे, और दिन, जाकर क्या वापस आते हैं ? नदीके जो प्रवाह बह चुके हैं, मूर्ख उनके वापस आनेकी आशा क्यों करते हैं ? मेघोंका घर्षण, त्रिसुतका स्फुरण, स्वप्न और बालभावकी हलचल, जलबुद्बुद, तरंग और इन्द्रधनुष कितनी देर दिखते हैं, क्या इनका विनाश नहीं होता? ॥१-८
घत्ता-भरत बाहुबलि और ऋषभ काल रूपी नाग द्वारा निगल लिये गये। क्या एक साथ मिलकर अब अयोध्या में दिखाई देंगे॥९॥
[१३] मन्त्रियोंने संक्षेपमें जो उदाहरण दिया उससे चक्रवर्तीका सदय विदीर्ण हो गया । वह सोचता है, कि जिस कारणसे वे यहाँ दरबारमें नहीं आ सके उससे स्पष्ट है कि मेरा शासन समाप्त हो चुका है। अवसर मिलने पर, भीम और भगीरथने जो कुछ अनुभव किया था वह सब कह दिया। यह सुनकर राजा मूर्छित हो गया; जैसे पवनसे आहत होकर महावृक्ष धरती पर गिर पड़ा हो । उस अवसर पर उसके प्राणोंने, स्वामीके द्वारा सम्मानित अनुचरोंकी भाँति, उसे नहीं छोड़ा। बड़ी कठिनाईसे उसकी वेदना दूर हुई। पूरे शरीरमें चेतना आनेपर बह ठा। (वह सोचने लगा) शोक और सेनासे क्या ? मैं अधिकार भावसे प्रत्रज्या लेता हूँ ? इस लक्ष्मीने बहुतोंको लड़वाया है, और पाहुणय ( काल या अतिथि) की तरह यह बहुतोंके पास गयी है ! ॥१-८॥
पत्ता-जो-जो कोई युवक है, उसी उसी की यह कुलपुत्री है, यह धरती वेश्याकी तरह, किस-किसके द्वारा नहीं भोगी गयी ॥९॥