Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 332
________________ पउमचरित पत्ता तं णिसुणे दि अंसु फुपनियएँ वुचइ लीहउ ऋढन्तियएँ । 'भच्छन्त अच्छिर और महु अन् जाएसइ पई जि सहुँ' ॥२॥ तं ययणु पडिउ णं असि-पहारु । अवहेरि करेप्पिणु गड कुमार ॥१॥ मासण-सरवरें आवासु मुक्छ। प्रत्यवहाँ ताम पया दुक्कु ॥२॥ दिट्टई सयवत्तई मउलियाई। पिय-विरहिय-महुरि-मुहलिया॥३॥ चही वि दिह विणु चकएण। पाहिज्जमाण मयरन्दएण ॥३॥ विहुणन्ति चनु पङ्खाहणन्ति । विरहाउर पान्दन्ति धन्ति ॥५॥ सं णिएँ वि जाउ तहों कपा-मार । 'मई सरिसज अण्णु ण को वि पाउim ण कयाइ वि जोइड णिय-कलत्तु । अच्छह मयणमिग-पक्षिप्त-पतु ॥॥ परिभते वि संमाणिज' ण जाम । रणें वरुणही अज्झु ण देहि ताम'८॥ घत्ता सम्भाउ सहायहाँ कहिउ तुणु पहसिॉण घुनु 'ऐड परम-गुणु' । उप्पऍ चि णहङ्गणे वे वि गय पंसिय-अहिसिळणे मत्त गय ॥९॥ [ १२ ] मिधिसेण अत्त अक्षणह मवणु। पच्छपणु होवि घिउ कहि मि पवणु॥॥ गड पहसिउ भन्सरें पढ़ । पणप्पिणु पुणु भागमणु सिंह ॥२॥ 'परिपुण्ण मणीरह अजु देवि । हरें भायज बाउकुमास लेवि' ॥६॥ संणिसुणेवि भणह वसन्तमाल । औरंसु-सित्त-यण-अन्तराल ॥॥ 'मव-मव-संचिय-दुह-भाषणाएँ। एचड्डु पुण्णु शाह भक्षणाएँ ॥५॥ जो कि वेथारहि' रुभइ जाय । सयमेव कुमार पट्ट ताव ॥६॥

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