Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पडमचरित
दुग्वार-वहरि-विणिवाराहीं। मुहु मलित सुभहों महाराहों' ॥८॥ तं सुगंवि वसंतमाल अवह। 'सुविणे वि कलङ्क ण संभवह ॥९॥
অন্যা इमु कशशु इमु परिहणउ इमु कञ्चीदाम पहाणहाँ। गंतो का वि परिक्ष करें परिसुजमाई जेण मों जणहों ॥३०॥
संणिसुणवि वा समुष्टिय गुणु :
वे वि ताउ कसघाएँहि हयउ पुणुप्पुणु ॥१॥ कि जारही गाहिं सुधष्णु घरें। जें कहर घडावे वि छुहइ करें ॥२॥ अण्णु वि पत्तिउ सोहग्गु कर । जे काणु देव कुमार पर' ॥६॥ कडुअक्खर-पहर-भयाउरउ । संजायउ घे वि णिसाउ ॥ हकार वि पणिड कूर-मदु । 'हय जोत्तें महारह-वीद घडू ॥५॥ एयर दुहउ अवलक्षणड । सति-धवसामल-कुल-सन्छणउ ॥६॥ माहिन्दपुरहों दूरन्तरेण परिधिवधि आउ सहुँ रहवरेण ॥७॥ जिह मुअ ण आवड वत्त महु' त णिसुप वि सन्दणु जुत्तु लहु ॥८॥ गड वे वि चहावि गवर हि । सामिणि करड आएसु शहिं ॥९॥
घत्ता णयरहों दूरे वरन्तरैण अक्षण रुवन्ति भोरिया । 'माएँ खमेजहि जामि हउँ' सहुँ धाहएँ पुणु शोकारिया ॥३०॥
कूर-वीरें परिभत्तएँ रवि अत्यन्तो ।
अक्षणाएँ करउ चुक्षु व असहन्तभो ॥३॥ मीषण-रणिहि भीमण अड़ह । खाइ व गिलइ घ उवरि व पद ||२॥ भिभियइ ध भिकारी-रव हि। रुवह व सिव-सहहि रउरवहिं ॥३॥

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