Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
पडमचरिउ
पुप्फुबह ष फणि-फुक्कार" हिं। बुकह व पमय-तुकारऍहि ॥४॥ सा दुक्खु बुक्म्नु पश्यिकिय णिसि । दिणवरण पसाहिय पुग्न-दिसि ॥५॥ गयड णिप-णयह पराइयर। मग्गए परिहास पधाइयउ ॥६॥ 'परमेसर आइय मिग-णयण । अक्षणसुन्दरि सुन्दर-वयण' ॥७॥ से सुवि जाय दिहि णरचरहों। 'लहु पट्टणे सट्ट-सोह करहों ॥८॥ उतम मणि-कजण-तोरणई। वर-वेसउ लेन्तु पसाहणइ ॥५॥
__ घत्ता सन्च पसाहहाँ मत्त गय पल्लाणहाँ पत्रर तुरङ्ग-थट । (जय-) मङ्गल-दूर आहूणहाँ सवडम्मुझ सन्तु असेस भउ ॥१०॥
भणे वि एम पडिपुच्छिउ पुणु दद्धाचओ ।
'कह तुरङ्ग कह रहवर को वोलायो' ॥१॥ पडिहारु पयोलित्र अतुल-चल । णड को वि सहाउ ण कि पि वलु॥२॥ मञ्जण वसन्तमाला सहुँ। भाइय पर एत्ति कहिउ महु ॥३॥ एकऍ अंसुभ-जल-सित्त-थण। दीसह गुरुहार विसरणा-मण' तं णिसुणे वि घिउ हेटामुहर। परवाइ सिरें वज्जेण हउ ॥५॥ 'दुस्सील दुट्ट मं पइसरउ । विणु खेवें जयरहों णीसरउ' ॥६॥
भणइ आणन्दु मन्ति सुचवि। अपरिक्रिसर किजाइ की ण दि ॥७॥ सासुअर होन्ति विरुधारित । महसइहें वि अवगुण-मारियउ |||
धत्ता सुफइ-कहाँ जिद खल-महउ हिम-वलियड कमलिणिहि जिह । होन्ति सहा घरिणिउणिय-सुहाँ खक-सासुअर सिंह ॥९॥

Page Navigation
1 ... 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371