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चउदहमो संधि
२२७ हो ? क्रिसीकी काली रोमावली दिखाई दी मानो कामवेणी ही गलकर वहाँ प्रवेश कर गयी, किसीके स्तनपर ऊपरका वस्त्र ऐसा शोभित था मानो कामदेवका तोरण हो ॥१-८1) ___घत्ता-किसीके स्तनके ऊपर रक्तरंजित प्रचुर नखक्षत ऐसे मालूम होते थे मानो तेजीसे भागते हुए कामदेवके अश्वोंके पैर गड़ गये हो 1 ।।५।।
[८] उस जलक्रीडाको देखकर प्रमुख देवताओंमें बातचीत होने लगी। एक इर्षित होकर कहता है, "त्रिभुवनमें सहस्रकिरण ही धन्य है, जिसके पास विभ्रम हावभावकी चेष्टाओंसे युक्त और विलासपूर्ण हजारों स्त्रियों है, जो नलिनीवनके समान दिनकर (सूर्य और राजा सहस्रकिरण) की किरणोंकी इच्छा रखती है, कुमुद वन जिस तरह चन्द्रमाको चाहता है, उसी प्रकार वे सहस्रकिरणको चाहती हैं, जिसका समय कामविलास और मानिनी स्त्रियोंको मनाने के प्रयासमें जाता है। जिसके लिए दुनिया मतवाली है, वह सुरति उसे प्राप्त है। जलक्रीड़ासे क्या पर्याप्त नहीं हैं।" यह सुनकर एक
और ने कहा, "सहस्रकिरण केवल पानीका बुलबुला है, सुन्दर है, यह प्रवाह है, जिसमें छिप जानेपर भी यह युवतियोंके द्वारा पा लिया जाता है ।।१-८॥ ___घता-जिसके कारण पानीके भीतर ढीले वस्त्रोंको ठीक करते हुए एक बारमें ही अन्तःपुर मान छोड़कर हर्षपूर्वक पास आ जाता है ॥२॥
[९] रावण भी जलक्रीड़ा करनेके बाद सुन्दर बालूकी वेदी बनाता है, ऊपर जिनवरकी प्रतिमा स्थापित कर, विविध वितानोंका समूह बँधचाकर, घी-दूध और दहीसे अभिषेक कर, नाना प्रकारके मणिरत्नोंसे अर्चना कर, नाना प्रकारके विलेपनके भेवों दीप, धूप, नैवेद्य, पुष्प, और निर्माल्यसे पूजा कर जैसे ही