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सत्तरहमो संधि पुत्र इन्द्रजीतने आयाम करके, शास्त्रोंको आहत करनेवाले तीस तोरोंसे उसका कवच छिन्न कर दिया। शरीर किसी प्रकार वच गया, वह कटा नहीं। जैसे ही वह उछलकर उसे पकड़नेवाला था, वैसे ही इन्द्र कहा आ गया । १. -२
घत्ता-शल लिये हुए, हाथीको प्रेरित करके अमरराज बीच में आकर स्थित हो गया और बोला, "अरे शत्रुका मर्दन करनेवाले रावणपुत्र, यदि वीरता हो तो मेरे ऊपर उछल"।।१०।।
[९] इस प्रकार क्षात्रधर्मको ताकमें रखते हुए, भौंहोंसे भारवर सभी देवोंने लंकाराजके पुत्र इन्द्रजीतको घेर लिया। एक रावणपुत्रको अनेकोंने घेर लिया, वह सुभटश्रेष्ठ तब भी उनको कुछ नहीं गिनता । रोकता है, मुड़ता है, दौड़ता है, लड़ता है, पचास-साठ शत्रुओं का सफाया कर देता हैं। रचको रथसे चूर कर देता है, गजयरको गजवरसे कुचल देता है। तुरंगको तुरंगसे गिरा देता है, मनुष्य, मनुष्यके आधातसे घायल होता है। इस प्रकार जय इन्द्रजीत पूरे आयामके साथ सबको अश्चर्यमें डाल रहा था कि इतनेमें सन्मति नामक सारथी कहता है, "आप निश्चिन्त हैं माल्यवानका पुत्र मारा गया है, और भी इन्द्रजीतको अक्षात्रभावसे घेर लिया है समस्त सुरवर सेनाने । महायुद्धमें यद्यपि वह अजेय है, फिर भी अकेला बह अनेकोंको कैसे जीत सकता है ?" ||१-२||
घत्ता- यह शब्द सुनकर जनोंको सतानेवाला रावण हाथ में तलवार लेकर महारथमें चढ़ा, अत्यन्त अईकारसे भरे हुए देवोंने उसे जगका अन्त करनेवाले कृतान्तकी तरह देखा ॥१०॥
[१०] दूरस्थ निशाचरराजने सुरराजको इस प्रकार देखा, जैसे विरुद्ध होकर सिंह गजराजको देखता है । वह कहता है,