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सत्तरहमो संधि "सारथि-मारथि, रथ वहाँ हाँको, जहाँ सफेद आतपत्र है। जहाँ ऐरावत गरज रहा है, जहाँ दुन्दुभि बज रही है। जहाँ इन्द्र देवताओंसे घिरा हुआ है। जहाँ इसने वनदण्ड हाथमें ले रखा है।" यह सुनकर सन्मति सारथिका उत्साह बढ़ गया, शंख बजाकर उसने अपना रथ आगे बढ़ाया। कोलाहल होने लगा। सूर्य बजा दिये गये । शनि और यमके मुख दुष्टोंकी तरह हँसने लगे। समर होने लगता है, सेनाएँ भिड़ती है, उत्साहसे भरी हुई और कवचासे आरक्षित | प्रबल अश्व, प्रबल अश्वोंसे, गज गजवरोंसे, रथ रथवरोंसे और पैदल, पैदल सैनिकों से ॥१-९॥ ____घत्ता-हुंकार छोड़ते हुए, प्रहार करते हुए, सिर कर और नाक झुकाये हुए बिना किसी खंदके दोनों सेना अनुरक्त मिथुनोंकी भाँति आपस में भिड़ गयीं ॥१८॥
[११] दोनों सेनाओंमें दोनों ओरसे भयंकर युद्ध हुआ। इन्द्रजीत और जयन्त में तथा रावण और इन्द्रमें । पिता रत्नाश्रव और सहस्रारमें, मय-बृहस्पति-मारीच और कुबेरमें, विपमशीलवाले यम और सुग्रीवमें, प्रलयकालके अनलकी लीला धारण करनेपाल अनल और नलमें, चन्द्रमा और अंगद में, सूर्य और अंगमे, खर और चित्रमें, दूपण और चित्रागमें, सुत
और चमूमें, विश्वावसु और हस्तमें, सारण और हरिमें, हरिकेश और प्रहस्तमें, कुम्भकर्ण और ईशान नरेन्द्र में, विधि
और केशरीमें, विभीषण और स्कन्धमें, घनवाहन और तडिकेशीके कुमारमें, दुर्य माल्यवन्त और कनकमें, जम्यू
और मालिमें, जीमूत और निनादमें, घनोदर और वनायुधमें, चानरवजियों और सिंहध्वजियों में इस प्रकार प्रसिद्धप्रसिद्ध लोगोंमें युद्ध हुआ 11१-९।।