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सत्तरहमो संधि
२६. का था। नर से नरके बीच १४ अँगुलियोंकी दूरी थी, रात्रिमें ११ । उतनी ही अश्वसे अश्व के बीच में भी। गजवरसे गजबरके बीच पाँच और धनुर्धारीसे धनुर्धारीके बीच ६ अँगुलियों की ॥१-८॥
पत्ता- उस न्यूह की रचना कर उन्होंने सूर्योका भीषण कोलाहल किया, उस समय ऐसा लगा मामो युद्धके प्रांगणमें धरती और इन्द्र स्वयं अलंकृत होकर स्थित थे ।।९।।
सत्रहवीं सन्धि
मन्त्रणा समाप्त होने और दूत्तके वापस जानेपर दोनों सेनाओंमें रोप बढ़ गया । त्रिलोकभयंकर और देवताओं के लिए भयंकर रावण इन्द्रसे भिड़ जाता है।
[१] हाथी अम्बारीसे सजा दिये गये, अश्व-समूहको कवच पहना दिये गये । ध्वजसमूह उड़ने लगे। विमान और रथ चलने लगे। भयंकर समरभेरी बजा दी गयी जो इन्द्रके शत्रुओंको कँपा देनेवाली थी। हस्त और प्रहस्तको सेनापति बनाकर, प्रयाण देकर राजा स्वयं चला । कुम्भकर्ण, लंकेशविभीषण, नल, सुग्रीव, नील, खरदूषण, मय, मारीच और भृत्य, सुतसारण, अंग, अंगद, इन्द्रजीत और घनवाइन । रणरस (उत्साह्) से भीगे हुए सब लोग युद्धके लिए दौड़े और पलमात्रमें युद्धभूमिमें पहुँच गये । रावण भी पाँच सौ धनुषोंसे मार्ग देकर शत्रुव्यूहके विरुद्ध प्रतिव्यूहकी रचना करता है। देवसेना राक्षस सेनापर टूट पड़ी। आहत नगाड़ोंका कोलाहल होने लगा। भुवनभयंकर महायुद्ध हुआ। धूलि दिशान्तरोंको मैली करती हुई छा गयी ॥१-९॥