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सोहमी संधि
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हरिकेश के द्वारा बलहस्त और प्रहस्य, सीम द्वारा विभीषण और कुम्भकर्ण निमन्त्रित हैं। इसी प्रकार दूसरों - दूसरों के द्वारा दूसरे दूसरे आमन्त्रित हैं ॥१-८||
धत्ता — परम्परा अनुसार ही तुम्हें यह निमन्त्रण दिया गया है, तुम सब भारी प्रहारोंका भोजन करोगे !" ॥९॥
[१४] यह कहकर चित्रांग वहाँ गया जहाँ देवताओंसे घिरा हुआ इन्द्र था । वह बोला, “परमेश्वर, राक्षस अजेय है, वह तुम्हारे साथ सन्धि करने को तैयार नहीं है।" यह सुनकर प्रबल शत्रुपक्ष और इन्द्र तैयार होने लगा । भेरी और तूर्य, पट्ट-पट तथा वा बजा दिये गये । मत्त महाराजों की झूले सजा दी गयीं। तुरंगको कवच पहना दिये । रथ जोत दिये गये । यश के लोभी क्रुद्ध सुभट तैयार होने लगे। रणभारमें समर्थ विश्वावसु, वसु हाथमें हथियार लेकर, जम-शशि और कुबेर, किंपुरुष, गरुड़, गन्धर्व और यक्ष- किन्नर, नर और विरलिया अमर । जय नगर के मुख्य द्वारपर सेना नहीं समायी तो वह उछलकर आकाश तलमें जा पहुँची ॥१-८||
घत्ता — इन्द्र सन्नद्ध होकर ऐरावतपर चढ़ गया मानो विन्ध्याचलके ऊपर शरद के महाघन आ गये हों ॥२९॥
[१५] मृग-मन्द-भद्र और संकीर्ण गजों और पाँच सौ धनुर्धारियोंसे घटाकी रचनाकर, आगे-पीछे भद्र समूह बैठ गया। सेनापति और मन्त्रियोंने व्यूहकी रचना की प्रवर हथियारोंसे भयंकर सुरवर सघन कक्षों और पक्षोंमें लोकपाल, ओठ चबाते हुए, रक्त कमलके समान आँखोंवाले पन्द्रह अंगरक्षक प्रत्येक गजके पास थे । पाँच-पाँच चंचल अब रखे गये, प्रत्येक अश्वके साथ तीन-तीन योद्धा तलवार के साथ रखे गये ! महागजों का यह जितना भी रक्षण था, उतना ही रक्षण रथवरों