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सत्ताहमो संधि [५] उस युद्ध में कृतान्त, चन्द्र, कुबेरराज, केशरी, कनक, अग्नि और माल्यवन्तके नष्ट होनेपर तीनों क्षमाभाव छोड़कर फहराती हुई ध्वजाओंवाले वे महारथी निशाचर इस प्रकार भिड़ गये, मानो मूसलाधार मेघ पहाड़ोंसे टकरा गये हों।" श्रेष्ठ तीरोंसे श्रेष्ठ तीर काट दिये गये। वे तीनों पीठ देकर भाग गये। केवल नये अमरकुमार दौड़े। और जहाँ शत्रु था वहाँ
आकर स्थित हो गये। शिलीमुखोंसे श्नीमालिको इस प्रकार ले लिया जैसे भ्रमर जिनभगवानके चरणोंको। अर्धचन्द्रसे चन्द्रमा का सिर काट दिया, और नील कमल फैला दिये गये हों, जहाँ जहाँ राक्षस पहुँचता है, वहाँ-वहाँ उसके सामने कोई नहीं टिक सका । बिखरे हुए छम्र कुमारोंके सिर ऐसी शोभा पा रहे हैं, मानो युद्धके देवताके लिए बलि दे दी गयी हो ॥१-५॥
पत्ता-तब इन्द्र विरुद्ध हो उठता है, और सन्नद्ध होता है, इतने में जयन्त अपना रथ बढ़ाता है,"हे तात, सुभटोंके लिए यम के समान मेरे रहते हुए आप शस्त्र धारण क्यों करते हैं ?"||१०||
[६] इन्द्रकी जय बोलकर जयन्त दौड़ा, “निशाचर ठहर, कहाँ जाता है मेरे जीते हुए ? सामने अपना रथ बढ़ा, मैं इन्द्रपुत्र तुझे चुनौती देता हूँ, तीरिय, तोमर और कर्णिकाके आघातसे, प्रचुर वावल्ल भालों और तीरोंसे, अर्धचन्द्रों, खुरुष और शैलामोंसे, पट्टिस-फलिह-शूल-फर और खड्गसे, मुद्गर-लकुटी-चित्रदण्ड और इण्डिसे, सब्बल-हूलि-हल-मुसल
और मुसुण्डीसे, झसर-त्रिशक्ति-फरसु और इषुपासोंसे, हजारों कनक-कोत-धनन्वक्रोंसे, वृक्ष-शिलातल और गिरिवरके आघातोंसे, अग्नि, जल, पवन और विद्याओंके संघातोंसे।"
यह सुनकर श्रीमाल हंसा और उसने अपना महारथ इन्द्रके सामने कर दिया और कहा, "तुम्हें छोड़कर दूसरा कौन युद्ध में चुनौती दे सकता है" ।। १-९॥