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सोलहमो सास
२१९ और भी सन्तुष्ट मनसे देकर उसने एक पलमें आशाली विद्या मांग ली। परितुष्ट होणार उसने भी दे दी, वह मूर्खा अपनी हानि नहीं जान सकी ॥१-८।।
घत्ता-तबतक आशाली विद्या आकाशमें गरजती हुई श्रा गयी, मानो नलकूवर विद्याधरको छोड़कर उसकी लक्ष्मी ही आ गयी हो ॥२॥
[१५] दूती चली गयी। योद्धाओंने कोलाहल किया। गजघटाओंसे पुरवरको घेर लिया। नलकूबर भी सन्नद्ध होकर निश्चित मन विभीषणसे भिड़ गया। महायुद्ध में दुर्जेय बलसे बल, रथसे रथ, महागजसे गज, अश्वसे अश्व, नरवरसे नरवर, प्रहरमधारी प्रहरणधारीसे और चिह्न चिह्नसे भिड़ गये । वैमानिकोंसे वैमानिक । उस तुमुल घोर संग्राममें जैसे सहस्रकिरणको भीषण रावणने, उसी प्रकार विभीषणने तत्काल नलकूवरको विरथ कर पकड़ लिया। पुरके साथ सदर्शन चक्र भी सिद्ध हो गया । परन्तु दशाननने उपरम्भाको नहीं चाहा ॥१-८॥ __घत्ता–पुरेश्वर उसी नलकूबरसे अपनी आज्ञा मनवाकर उपरम्भाके साथ उसको राज्य भोगने दिया ||२||
. सोलहवीं सन्धि
नलकूबरके पकड़े जाने और शत्रुओंकी विजय घोषणा होने पर इन्द्र अपने मन्त्रियोंके साथ मन्त्रणाके लिए बैठा।
[१] उसने जो गुप्तचर भेजे थे वे तत्काल वापस आ गये । उसने पूछा, "लो जल्दी बताओ, वह (रावण) कितना चतुर है ? उसकी कितनी शक्ति है ! कितनी सेना है ?जा कितना है ?