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सोलहमो संधि
२५९ [८] उसने मन्त्रीके वचनको स्वीकार कर लिया। उसने सत्काल चित्रांग दूतको बुलवाया। इन्द्र उसे कुछ तो भी सिखाता है, जबतक, तबतक नारद रावणके पास जाता है।
और उसे एकान्त में ले जाकर कानमें कहता है, “अपने स्कन्धावारको सुरक्षित रखो, चौबीस श्रेष्ठ गुणोंसे युक्त इन्द्रका दूत आयेगा, वह नरवरों और सुग्रीव प्रमुख विद्याधरोंमें फूट डालेंगा, उसके साथ मधुर वचनोंमें इस प्रकार बात करना, जिससे सन्धि न हो । वह थोड़ा है, और आज तुम प्रबल हो, वह तुम्हारे राज्यका अपहरण कर स्थित है, इस अवसर पर संग्राममें इन्द्रको संकट में डाला जा सकता है. नही तो मादमें वह अशक्य हो जायेगा" ||१-८
धत्ता-“हे दशानन, मरुयज्ञमें जो तुमने विघ्नोंसे मेरी रक्षा की, उसी उपकारके कारण मैंने यह परम रहस्य तुम्हें बताया" ॥२॥
[२] नारद आकाशमार्गसे कहीं चले जाते हैं। दशानन सेनापतिसे कहता है, "कोई गूढ पुरुष किसी भी प्रकार प्रवेश न कर सके, स्कन्धावारकी ऐसी रक्षा करना।" जबतक दोनों में इस प्रकार बातचीत हो रही थी तबतक चित्रांग रथसहित वहाँ आया। पुर, राष्ट्र और अटवी तथा युद्ध दुर्ग परिग्रह और धरती को देखता हुआ, उत्तर-प्रत्युत्तरका विचार करता हुआ बहुत-से शान बुद्धि और नीतिका अनुसरण करता हुआ वह तुरन्त मारीचके भवन में प्रवेश करता है। सस्नेह उसका आवर करके मारीच उसका हाथ पकड़कर राजाके पास ले गया। रावणने भी उसे बैठाकर बढ़िया पान, चूडामणि, कण्ठा, कटक और दोर प्रदान की। आदर कर और सैकड़ों गुणोंकी कल्पना करते हुए उसने पूछा, "आपकी कितनी सेना है ? ॥१-२||