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सोहमो संधि
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और उपहार प्रत्युपहार रखनेमें, आधा पहर पत्र बाँचने और आदेश प्राप्त गुप्तचरोंको निपटानेमें, आधा पहर स्वच्छन्द विहार और अन्तरंग मन्त्रणामें, आधा पहर समस्त सेनाके निरीक्षण तथा रथ- गज-अश्व और वज्रके अन्वेषण में ||१८|| क
घत्ता - आप पर
करता है। यदि वह शत्रुमण्डलसे नाराज होता है, तो उसे सीधा यमके स्थान भेज देता है" ॥९॥
[३] "हे देवराज, जिस प्रकार दिवस उसी प्रकार वह रातको भी आठ भागों में विभक्त कर बिताता है। पहले आये पहर में गूढ़ पुरुषोंके साथ विचार-विमर्श करता हुआ बैठा रहता है, दूसरे में स्नान और आसन, अथवा नवरतिके शुभदर्शन करता है। तीसरेमें जयसूर्य के महाशब्द के साथ प्रसन्नमन अन्तःपुरमें प्रवेश करता है। चौथे पहरमें खूब सोता है और चारों दिशाओंकी दृढ़ता से रक्षा करता है। छठे पहर में नगाड़े बजाकर उसे उठाया जाता है, वह सर्वार्थ शास्त्रोंका अवलोकन करता है। सातवें में मन्त्रियोंके साथ मन्त्रणा करता है । अपने राजकार्य की चिन्ता करता है। आठवें में शासनधर जनोंको भेजता है और प्रातःकाल वैद्यसे सम्भाषण करता है। रसोईघरमें पूछताछ करता है और बैठता है, नैमित्तिकों और पुरोहितोंसे बात करता है || १-२॥
धत्ता - इस प्रकार १६ भागों में विभक्त कर वह दिन और रातको व्यतीत करता है। युद्ध करनेके लिए उसका मन निरन्तर उत्साह से भरा रहता है" ॥१०॥
[४] तुममें सन्तोष करने लायक एक भी बात नहीं है । उत्साहशक्ति तुममें स्वप्न में भी नहीं है । जब शत्रु छोटा था, तत्र तुमने उसे नहीं मारा, जो नखके बराबर था वह अब कुठारके बराबर हो गया, जब दशाननका नाम ही नाम हुआ