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घउदामो संधि
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कामदेव, इन्द्र, भरत, सगर, मघवा और सनत्कुमार चक्रवती वे सब भी, उनकी एक कलाको नहीं पा सकते। वह कोई अपूर्व लीलाको मानता है, और धर्म तथा अर्थ दोनोंको जानता है ? कामतस्वकी रचना तो उसीने की है, दूसरे लोग तो पसाये हुए कोदोंका रमन करते हैं ॥१.८|| __घत्ता-प्रभावान मेरे भुवनमें तपते हुए. आकाशमें स्थित सूर्य शोभा नहीं पाता, इस कारणसे प्रिय व्यापारफे साथ 'यह पानीके भीतर प्रवेश करके स्थित है" ॥९||
[१२] एक औरने कहा, "इसने जो कुछ कहा है, सचमुच वह मन मैंने देखा है, पुनः जम्मका अन्तःपुर मानी साक्षात कामपुर है, जो नूपर, मुरज और नृत्यकारीको धारण करता है, सौन्दर्य जलके तालाबसे सुन्दर है, शिर मुखकर चरणरूपी कमलोंसे युक्त सरोवर है, मेखलाओं और तोरणोंसे उत्सवका दिन है, स्तनरूपी हाथियोंसे साहारण-कानन है, हाररूपी स्वर्गवृक्षोंसे गगनांगन है, अधररूपी प्रवालोंके मूंगोंका आकर है, दाँतोंकी पंक्तिरूपी मोतियोंका रत्नाकर है, जिद्वारूपी कोयलोंके लिए. नन्दन वन है, कानोंके आन्दोलनसे लचीलापन है, लोचनरूपी भ्रमरोंसे केशरशेखर है और भौंहोंकी भंगिमासे मृत्यकर है ॥१८॥ - पत्ता-बहुत या बार-बार कहनेसे क्या ? मदनाग्नि भयंकरता से सम्पूर्ण वह मनरूपी वित्तवाले अनन्त लोगोंके लिए धूत प्रचण्ड चोर ही उत्पन्न हो गया है" ॥२॥
[१३] एक औरने कहा, "मैंने निर्मल पानी में तिरते हुए यन्त्र देखे हैं, जो पुण्य कर्मोकी तरह अत्यन्त सुन्दर हैं, अभिनव प्रेमकी तरह सुगठित हैं, अत्यन्त कृपाणके हृदयकी तरह कठोर हैं, सुकविके पदोंकी तरह निपुण समास ( सुन्दर समास, दूसरे पक्षमें काठकी कलाशियोंसे रचित) है, कुपुरुषके