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घउदहमो संधि
२१५ घत्ता-लीलापूर्वक तैरते और निकलते हुए मुखकमलोंके लिए कितने ही (भौरे ?) दौड़े। राजाको यह भ्रान्ति हो गयी कि इनके समान रक्तकमल क्या होंगे ? ॥९॥
[६] एक दूसरेके ऊपर जलकीड़ा करते हुए, सघन जलधारा छोड़ते हुए, कहीं चन्द्रमा और कुन्द पुष्पके समान उज्ज्वल
और स्वच्छ, टूटते हुए हारोंसे जल सफेद हो गया, कहीं ध्वनि करते हुए नूपुरोंसे ध्वनित हो उठा, कहीं स्फुरित कुण्डलोंसे जल चमक उठा, कहीं सरस पानसे लाल हो उठा, कहीं यकुल कादम्बरी (मदिरा) से मत्त हो गया, कहीं स्फटिक कपूरसे सुवासित हो उठा, कहीं-कहीं सुगन्धित कस्तूरीसे मिश्रित था, काहीं-कहीं विविध मणिरत्मोंसे आलोकित था, कहीं धोये हुए काजलसे मटमैला था, कहीं अत्यधिक केशरके कारण पीला था, कहीं मलय चन्दनके रससे भरा हुआ था, कही यक्ष कर्दमसे मिश्रित था, कहीं भ्रमरपतियोंसे घुन्वित धारा
पत्ता--विद्रुम, मरकत, इन्द्रनील और सैकड़ों स्वर्णहारोंके समूहसे रंगबिरंगा नर्मदाका जल ऐसा जान पड़ता था मानो इन्द्रधनुष, धनविद्युत् और बलाकाओंसे युक्त आकाशतल हो ।।९।।
[७] कोई एक राजाके साथ क्रीड़ा करती हुई कोमल इन्द्रनील कमलसे उसपर प्रहार करती है । कोई मुग्धा अपनी विशाल दृष्टिसे, कोई नयी मालतीमालासे, कोई सुगन्धित पाटल पुष्पसे, कोई सुन्दर पुगफलों और बकुल कुसुमोंसे, कोई जीर्णवर्ण पट्टनियोंसे, कोई रत्न और मणियोंकी मालासे, कोई बचे हुए विलेपनसे, कोई सुरभित दवणमंजरी लतासे । कोई किसी प्रकार जलके भीतर छिपी हुई आधी ऊपर निकली हुई ऐसी दिखाई देती है, मानो कामदेवका चूड़ामणि शोभित ।