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अमो संधि [१०] जैसे ही युद्ध-प्रांगणमें राक्षसका पतन हुआ, वैसे ही इन्द्रकी सेनाने विजयकी घोषणा कर दी। भयभीत वानर सेना नष्ट हो गयी। आयुध गल गये और प्राण कण्ठोंमें आ लगे। तब किसीने जाकर सहस्राक्षसे कहा, "हे देव, शत्रुसेनाके पीछे लगिए, निशाचर और कपिध्वजियों सुकेश और किष्किन्धके द्वारा बहुत बार हम विदीर्ण किये गये। विजयसिंहका नाश करने. वाले यही है । ऐसा करिए, हे आदरणीय, जिससे ये लोग वापस नहीं जा सके।" यह सुनकर इन्द्र जैसे ही अपना गज प्रेरित करता है, वैसे ही चन्द्र उसके सामने आकर स्थित हो जाता है, "हे देवा, मुझे आदेश दीजिए। निशाचरों और वानरोंको मैं मारूंगा । सेनाको भी यममुखरूपी गुफामें फेंक दूंगा। जो दाँतरूपी शिलाओं और जिलासे कर्कश है ॥१-८||
पत्ता-न्द्रने हाथ ऊँचा कर दिया । तीर घरसाता हुआ चन्द्रमा इस प्रकार दौड़ा, जिस प्रकार मेघके पछाऊँ हवासे आहत होनेपर वर्षा ऋतुमें धाराएँ दौड़ती हैं ॥९॥
[११] वह बोला, "मरो भरो, मुड़ो मुड़ो, हताश वर्षा ऋतुके वानरो, क्यों नष्ट होते हो? सुरजनके नेत्रोंको आनन्द देनेवाली इन्द्र की सेना क्रुद्ध है । हे पाप ।” यह सुनकर, अपनी शंका दूर कर माल्यवन्त आकर उसके सम्मुख स्थित हो गया, जैसे पूर्ण चन्द्र के सामने राहु, जैसे महागजसमूहके सामने सिंह हो । वाह बोला, "अरे कलंकी बेशम चन्द्र, महिलाओंकी तरह तेरा मुख है, तू दोनों ही पक्षोंसे रहित हैं । चन्द्र कहकर तेरा मजाक बढ़ाया जाता है, क्या तुमसे भी कोई युद्धमें मारा जायेगा।" यह कहकर भिन्दपाल शस्त्रसे चापसहित चन्द्र आहत हो गया। मूळ आ गयी । वेदना फैलने लगी। धीरे-धीरे कठिनाई से उसे चेतना आयी ||१-८॥