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एगारहमो संधि [६] पुष्पक विमानमें बैठे हुए उस रावणने अपना परिकर और केशा खूष कस लिये। लाठी ले ली, और कलकल शब्द किया। तूर्य बजाते ही. मदोन्मत्त हाथी धनद और इन्द्रके दुश्मनके सामने दौड़ा ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार वर्षाऋतु विन्ध्याचलके सामने दौड़ती है। लाठीसे सुंदपर वह वैसे ही आहत हुआ जैसे दुर्वातसे मे घ। जबतक वह बिजलीकी तरह चमकती हुई अपनी सूडसे रावणके वक्षस्थलपर चोट करे, उसकी सूडको आहत कर यह उसके पिछले भागपर पढ़ गया, और बुद्बुद कहकर उसके कन्धेपर चोट की, फिर उसने सूंडसे आलिंगन किया और स्वप्न में (1) प्रियकी तरह वह उसे लाँधकर चला गया। पलमें वह गण्डस्थलपर बैठता और पलमें कन्धेपर, और एक क्षण में चारों पैरों के नीचे ।।१-८||
धत्ता-वह महागजके चारों ओर दिखता है, छिपता है, चमकता है, चारों ओर घूमता है। वह ऐसा जान पड़ता है, जैसे आकाशतलमें महामेघोंका चंचल विजली-समूह हो ।।९।।
[७] हाथीको वशमें करनेकी ग्यारह और दो बार बीस अर्थात् चालीस क्रियाओंका प्रदर्शन कर उसने महागजको निस्पन्द बना दिया, वैसे ही जैसे धूर्त वेश्याके धमण्डको घूरचूर कर देता है, जिस प्रकार परम जिनेन्द्र मोक्ष साध लेते हैं, उसी प्रकार (उसने महागजको सिद्ध कर दिया)। हाथी 'होजहोउ' रटने लगा। उसने भी 'भल-भल' कहकर अपना पैर दिया, उसने भी बायें अँगूठेसे उसे दबा दिया। वह कान पकड़कर हाथीपर चढ़ गया और वशमें कर अंकुश ले लिया। यह देखकर विमान और यानोपर बैठे हुए देवताओंने पुष्पवृष्टि की। विभीषण के साथ कुम्भकर्ण नाचा। हस्त, प्रहस्त, मय, सुत और सारण भी नाचे। माल्यवन्त, मारीच और महोदर, रत्नाश्रव, सुमालि और वमोदर भी नाच उठे ॥१-८।।