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बारहमी संधि
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सुनकर सैकड़ों युद्ध में अडिग रावणने युद्ध करना शुरू कर दिया । उसने सर्पविद्या छोड़ी जो सर्पोंके फनसे फुफकार छोड़ती हुई चली ॥१-२||
बत्ता - बालीने सर्पोका नाश करनेवाली भीषण गारुड़ विद्या विसर्जित की। वह उसी प्रकार पराजित हो गयी, जिस प्रकार कुलपुत्री की उक्ति-प्रति-उक्तियोंसे 'वेश्या' पराजित हो जाती हैं ॥१०॥
[१०] दशवदनने गरुड़-विद्याको नष्ट करनेवाली नारायणी विद्या छोड़ी, ओ गदा और धनुषको कारण किये हुए थी, उसके चार हाथ थे और हाथी पर गमन करती थी । तब सूर्यरजके पुत्र बालीने माहेश्वरी विद्याका स्मरण किया, कंकालों. से भयंकर हाथ में त्रिशूल धारण करनेवाली, चन्द्रमा गौरी-गंगा खट्वांगसे युक्त था । तब दशवदनने एक और विद्या छोड़ी, जिसे महाबली वाढीने रणमें सौ बार परिक्रमा देकर विमान और खड्गके साथ रावणको दाहिने हाथ पर ऐसे उठा लिया जैसे बड़ा हाथीने बड़ा कौर ले लिया हो, या बाहुबलिने चक्र ले लिया हो। देवताओंने आकाशमें नगाड़े बजाये और कपि
जियोंकी सेना में कोलाहल होने लगा || १८ ||
घत्ता - इस प्रकार लंकानरेशका मान-मर्दन कर तथा सुग्रीव को राजपट्ट बाँधकर बालीने कहा, “नमस्कार कर तुम रावणके अनुचर बन जाओ और सुख भोगो" ||९||
[११] “मेरा सिर दुर्नमनशील है उसी प्रकार जिस प्रकार मोक्ष शिखर सर्वोत्तम है। त्रिलोकाधिपतिको प्रणाम करनेके बाद अब यह किसी दूसरे को नमस्कार नहीं कर सकता है स्वामी, मेरी धरतीको आप भोगें और वानर तथा राक्षसोंके समूहका मनोरंजन करें। और तुमने जो उपकार किया है, तातके लिए तुमने यमराजको जीता था, उसके लिए मैंने यह प्रत्युपकार