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पारहमो संधि
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कर, मन्त्रियोंको भेजिए और कन्याका पाणिग्रहण कर दीजिए।" यह वचन सुनकर उसने मय और मारीच को भेजा। प्रेषित वे तुरन्त गये ॥१-८॥
घसा- उन्होंने विवाह कर लिया। विद्यासहित खर राज्यमें स्थित हो गया। चन्द्रोदरकी विधवा पत्नी व्रतवती अनुराधाके वनमें निवास करते हुए विराधित नामका पुत्र हुआ ||२||
[५] इसके अनन्तर, यमको सतानेवाले रावणने उक्त शल्य अपने मनमें रखते हुए महामति दूतको वहाँ भेजा, जहाँ सुप्रीयका सगा भाई वाली था । दूतने बालीके सामने उपस्थित होते हुए कहा कि मुझे यह बतानेके लिए भेजा गया है कि हमारी उन्नीस राज्यपीढ़ियाँ निरन्तर मित्रतासे रहती आयी हैं, कोई कीर्तिधवल नामका पुराना राजा था जो श्रीकण्ठके लिए अपना सिर तक देनेको तैयार था। नौवीं पीढ़ीमें अमरप्रभ हुआ जिसने राक्षसों में अपना विवाह किया और जिसने ध्वजों पर वानरोंके चिन्न अंकित करवाये | दसवाँ श्रीसहित कपि केतन हुआ। ग्यारहवाँ प्रतिपालके नामसे जाना जाता है। तेरहवाँ श्रेष्ठ खेचरानन्द हुआ। चौदहवाँ गिरिकिंवेलरबल, पन्द्रहवाँ अजितनन्दन, सोलहवा फिर उदधिरथ, जिसने तडित्केशके वियोगमें संन्यास ग्रहण किया। सत्तरहवाँ फिर किष्किन्ध हुआ, उसकी सुकेझने कौन-सी भलाई नहीं की। अठारहवाँ फिर सूर्यरज हुआ, यमका नाश कर जिसे इस नगरीमें प्रवेश दिलाया गया । तुम अब उन्नीसवें हो, अतः मनसे अहंकार दूर कर राज्यका भोग करो ॥१-१३।।
पत्ता-आओ उसका मुख देखें, वहाँ चलकर दशाननको तुम नमस्कार करो जिससे वह अपनी चतुरंग सेनाके साथ इन्द्र के ऊपर कूचका डंका बजवा सके ॥१४॥