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बारहमो संधि
से युद्ध होगा।" एक औरने कहा, "यह ठीक नही जंचता, क्या कपिध्वजी हमसे लदा ? श्रीकण्ठसे लेकर हमारी मित्रता है और भी हमारे उनके ऊपर सैकड़ों 3 पकार हैं ॥१-८॥ ___घत्ता-अथवा चाहे वानर हों, सुरवर या अन्यवर ? वे सारे योद्धा, रक्तकमलके समान नेत्रवाले रावणकी युद्धकी चपेट नहीं देख सकते" RII
[३] तब, बालीका खटका अपने मनमें धारण कर, रावणने दूसरी बात शुरु कर दी। एक दिन जब वह सुरसुन्दरी तनूदराका अपहरण करनेके लिए गया, तबतक कुलभूषण खरदूषण चन्द्रनखाका अपहरण करके ले गये | अलंकारोदय नगरमें सहोदरने उन्हें भागते हुए देखकर, उन्हें बचाने के लिए छिपाकर शरणमें रख लिया । उन्होंने सहोदर चन्द्रोदरको मार डाला। जो सिंहासन पर स्थित था उसे नष्ट कर दिया, जो आया उसको उसीके रास्ते भेज दिया। रथ, तुरग, गज और मनुष्योंसे प्रबल, जो राक्षस-सेना पीछे लगी हुई थी, द्वार न पा सकनेके कारण रुक गयी और मुड़कर वापस अपने नगर पली गयी ॥१-८॥
घत्ता-इतनेमें शीघ्र ही जब रावण सन्तुष्ट मन अपनी पत्नीके साथ आता है तो उसे अपना घर उदास, सूना और असुहावना-सा दिखाई देता है ॥९||
[४] शीघ्र ही किसीने खरदूषण और कन्याका दुश्चरित उसे बताया। सहसा रावणकी आँखें लाल हो गयीं और वेगसे वह उसके पीछे लग गया। इतने में मन्दोदरीने उसका हाथ पकड़ लिया, मानो यमुना नदीने गंगाके प्रवाहको रोक लिया है । वह बोली, "परमेश्वर, चाहे वह कन्या हो या बहन, ये अपनी नहीं होती। तुम एक हो, और वे तलवारोंसे भयंकर चौदह हजार विद्याधर हैं, यदि वे तुम्हारी बात मान भी लें, तो भी लड़की को घर में रखनेसे क्या लाभ । इसलिए युद्ध छोड़