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एगारहमो संधि
साथ छीज रहे हैं, कितने ही जीव कुम्भीपाकमें पकते हुए तरह-तरहके दुःख पा रहे हैं । उसने सबको अभयदान देकर मुक्त कर दिया। यमपुरीके सबानेवालोंको भी भगा दिया ||१-८।।
घाता-यमके किंकरोंने तब जाफर कहा, “वैतरणी नष्ट हो गयी है और नरक नष्ट हो गये है, असिपत्र वन ध्वस्त है और सैकड़ों बन्दीजन मुक्त कर दिये गये हैं" |
[१०] "हे देव, यह एक दुश्मन है जो मस गजेन्द्रसमूह के समान स्थित हैं।" यह सुनकर यमराज क्रुद्ध हो गया, ( और बोला )-"किसने जीते जी अपने प्राण छोड़ दिये हैं ? कृतान्तका मित्र शनि किसपर क्रुद्ध हुआ है ? किसका काल पास आकर स्थित है ? जिसने बन्दीजनोंको मुक्त किया है, और असिपत्र वनको तहस-नहस किया है, जिसने सातों नरक नष्ट किये हैं, जिसने बहती हुई वैतरणीको नष्ट कर दिया, उसको मैं आज अपना यमपन दिखाऊँगा।" यह कहकर वह सेनाके साथ निकला । भैसे पर आरूद, दण्ड और प्रहरण लिये हुए, कृष्णा शरीर, मूंगोंकी तरह लाल-लाल आँखोंवाला था बह । उसकी भीषणताका कितना वर्णन किया जाये ? बताओ मौतकी उपमा किससे दी जा सकती है ? ॥१-८॥ ___ घत्ता--यम, यमशासन, यमकरण, यमपुरी और यमदण्ड यदि इनमें से एक भी आक्रमण करता है, तो यह त्रिभुवनमें प्रलयंकर हैं, फिर युद्ध में पाँचोंका सामना कौन कर सकता है।।
[११] जब भीषण यमकरणको देखा, तो उसे सहन न करता हुआ विभीषण दौड़ा, केवल दशानन उसे हटा सका। उसने खुद यमकरणको ललकारा, "अरे मानव मुड़-मुड़, नष्ट हो जायेगा । तू व्यर्थ ही अपना नाम 'जम' कहता है। हे पाप, इन्द्रका, निष्करुण तेरा, चन्द्रका, सूर्यका, धनद और वरुणका, सबका यम मैं आया हूँ ? ठहर-ठहर, बिना आघात खाये कहाँ