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एगारहमो संधि घसा-यहाँ एक भी व्यक्षिः ऐसा नहीं था जो रावणके नाचनेपर न नाचा हो, हर्षसे पुलकित न हुआ हो और मनमें बीररस अच्छा न लगा हो ॥२॥
[८] उसका नाम त्रिजगभूषण रखा गया और वह उसे वहाँ ले गया अहाँ सेनाका शिविर ठहरा हुआ था। गजकथाका अनुरागी वह वहाँ स्थित था कि इतने में एक भट वहाँ आया। प्रहारसे विधुर उसका शरीर खूनसे लथपथ था । उसने नमस्कार कर राजासे निवेदन किया, "देवदेव, किष्किन्धके बेटोने सन्वल, फलिह, शूल, हल, कणिक, असिवर, झस, संठी और तीरों तथा चक्र, कोत, गदा, मुद्गरके आघातोंसे यमपर आक्रमण किया, उसने उन्हें नष्ट कर दिया। दोनों में से एक भी उसे नहीं पकड़ सफा, बल्कि बाणोंसे छिन्न-भिन्न हो गये, किस प्रकार उनके प्राण-भर नहीं निकले" यह सुनकर रक्षध्वजी कुपित हो गया । युद्धकी भेरी बज उठी और वह तैयारी करने लगा ॥१-८॥
पत्ता-अपने हाथमें चन्द्रहास तलवार लेकर विमान और सेनाके साथ वह चला जैसे धरतीको लाँघकर समुद्र ही आकाश में उछल पड़ा हो ॥२॥
[२] कोपकी ज्वालासे प्रदीप्त वह दौड़ा और शीघ्र ही आधे पलमें यमकी नगरी पहुँच गया। वहाँ देखता है अत्यन्त रौरव सात नरक, उनमें बार-बार हा-हा रव उठ रहा था, देखता है बहती हुई चैतरणी नदीको जो रस, मज्जा और रक्तके जलसे भरी हुई थी, देखता है कि हाथी के पैरोंसे पीड़ित सुभटो. के सिर तड़तड़ कर फूट रहे हैं। देखता है कि साँवर वृक्षके पत्तोंसे सिरोंमें धीरे जाते हुए मनुष्यों के जोड़े क्रन्दन कर रहे हैं । देखता है कि दूसरे जीव आगमें जलते हुए छनछन शब्दके