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एगारहमो संधि जाता है ?" यह सुनकर वैरियोंका क्षय करनेवाले यमने अपना भयंकर दण्ड युद्ध में फेंका, वह धकधक करता हुआ आकाशमें दौसा, उसे आते हुए देखकर राषणने खुरुपासे छिन्न-भिन्न कर दिया, सौ-सौ टुकड़े करके उसे गिरा दिया। मानो कृतान्तका घमण्ड ही नष्ट कर दिया हो ॥१-८।। __ घत्ता-तब यमने तुरन्त धनुष लेकर तोरोंकी भयंकर बौछार की, रावणने उसका भी निवारण कर दिया, उसी प्रकार जैसे दामाद दुष्ट ससुराल का ॥९॥
[१२] धनदका काम तमाम करनेवाले, बार-बार आक्रमण करते हुए, रत्नाश्रवके पुत्र रावणकी दृष्टि और मुद्राका सन्धान हात नहीं हो रहा था. उदद तीरोंकी पंक्ति दौड़ रही थी। यान-यान, अश्व-अश्व, गज-गजवर, छन्त्र-छन्त्र, ध्वज-ध्वज, रथरथवर, योद्धा-योद्धा, मुकुट-मुकुट, कर-करतल, चरण-चरण, सिर-सिर, उर-रतल बाणोंसे भर गया, सेनामें कडू आहद फैल गयी। यम भाग गया, विधुर और अनविहीन । सरभसे जैसे हरिण चौकड़ी भरकर भागता है वैसे ही वह एक पलमें दक्षिण श्रेणी में पहुँच गया। वहाँ उसने रथनूपुरके श्रेष्ठ इन्द्र और सहस्रारसे जाकर कहा, "हे सुरपति, अपनी प्रमुता ले लीजिए ! यमपना किसी दूमरेको सौंप दीजिए ||१-८॥
घसा--मालि और सुमालिके पोतोंके द्वारा मेरी यह हालत हुई है, किसी प्रकार मेरा मरण-भर नहीं हुआ, हे सुराधिपति, तुम्हारी लज्जाके कारण धनदने भी तपश्चरण ले लिया है" ||९||
[१३] यमके इन असुन्दर शब्दोंको सुनकर पुरन्दर भी तैयार होकर जैसे ही निकलता है, वैसे ही वृहस्पति सामने आकर स्थित हो गया और बोला, "जो स्वामी होता है वह आदिसे लेकर अन्त तक पूरी बातको गवेषणा करता है, परन्तु तुम अज्ञानीकी तरह दौड़ते हो, वह लंकाका क्रमागत राजा