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दसमो संधि
१५९ घत्ता-देखकर, सन्तुष्ट मन होकर सुमालिके पुत्र रत्नाश्रवने अपने पुत्रोको चूमकर पुलकित बाहुओंसे आलिंगनमें भर लिया ||२||
रूबी सन्धि नवनील कमलके समान नेत्रवाले रावणने छह उपवास कर, सुन्दर तथा सुवंश और सुकलत्रकी तरह चन्द्रहास खड्ग सिद्ध किया।
[१] हजार विद्याओंके निवासस्थान चन्द्रहास खड्ग साधकर, जब वन्दना-भक्ति करने के लिए सुमेरु पर्वत पर गया, तब मदमारीच आये | प्रवर कुमारी मन्दोदरीको लेकर वे रावणके घरमें प्रविष्ट हुए। वहीं उन्होंने चन्द्रनखाको देखा और पूछा, "परमेश्वरी, दशानन कहाँ गया है ? यह सुनकर नेत्रोंको आनन्द देनेवाली रत्नाश्रवकी कन्याने कहा, "चन्द्रहास खङ्ग साधकर अभी-अभी सुमेरु पर्वतकी ओर गये हैं। तबतक आप यहाँ आकर बैठे।" उसे ( मन्दोदरी) को लेकर क्षण-भर दे बैठे ही थे कि सन्ध्या समय धरती काँपने लगी, समस्त दिशामार्ग चलित हो उठे ॥१-८॥
घत्ता-एक पलमें अँधेरा, दूसरे पलमें चाँदनी । पलमें मेघोंकी वर्पा, मानो रावग देखता हुआ माहेन्द्री विद्याका प्रदर्शन कर रहा था ||५||