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दसमी संधि घसा-सौ अपराध होने पर भी वैश्रवण तुम्हारे साथ युद्ध नहीं करेगा, उसी प्रकार, जिस प्रकार, शबर पुलिन्दोंके द्वारा जलाये जानेपर भी, विन्ध्याचल उनके विरुद्ध नहीं होता ।।९।।
[८] पर अब इसे मैं आपत्तिजनक समझता है। यदि आप कुम्भकर्ण का निवारण नहीं करते। इसके पास तुम्हारा विनाश है, धनदका आना, इसके हाथमें है। इसके कारण ही, तुम्हें शंकाकर पातालमें प्रवेश करना पड़ेगा। मालि भी इसी प्रकार झगड़ा किया करता था। वह उसी प्रकार मारा गया, जिस प्रकार प्रदीपमें पतंग। उस समय तुम लोगोंका जो हाल हुआ था, ऐसा लगता है कि इस समय वही वापस होना चाहता है। अच्छा यही है कि उस कुलकृतान्तको मुझे सौंप दें, या फिर वह बेड़ियाँ पहनकर अपने घरमें पड़ा रहे।" यह सुनकर निशाचरेन्द्र कुपित हो उठा, "किसका धनद ? और किसका इन्द्र ?” उसने अपना भीषण चन्द्रहास खड्ग देखा जिसमें प्रतिपक्षके पक्षका क्षय करनेके लिए कालका निवास था। वह बोला, "मैं पहले तुम्हारा बलिविधान कर, फिर बादमें, धनदका मानमर्दन करूँगा।" तब सिर नवाते हुए, विभीषणने कहा, "इस दूतको मारनेसे क्या ? ॥१-१०॥ __घत्ता-शत्रुमण्डलोंमें अयश फैलेगा, तुम्हें यह शोभा नहीं देता, क्या मृगकुलसे लड़ता हुआ पंचानन लजित नहीं होता ? ॥१२॥
[२] निकाला गया दूत ऐसे भागा, जैसे सिंहके पंजेसे चूका कुरंग भागता है । यहाँ दशानन भी, आवेशसे भरकर सन्नद्ध होकर कृतान्तकी तरह निकला। विभीषण और भानुकर्ण भी निकले । रत्नाश्रव, मय-मारीच और दूसरे लोग भी निकले। सहोदर माल्यवन्त भी निकला। इन्द्रजीत और शिशु होते हुए भी मेघवाहन निकला, प्रस्थानके तूर्य बज उठे। तब दूतने भी