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एगारहमो संधि महीधरके युद्ध में उसे रत्तसहित चक्र प्राप्त हुआ। छठे दिन ममची धरती उसके अधीन हो गयी और मदनावली उसे हाथ लगी। सातवें दिन जाकर उसने माँका जय-जयकार किया, और तब आठ दिन पूजायात्रा निकाली ॥१-८॥
पत्ता-शशि, क्षीर, शंख और पुत्र के समान मनिन र उसी हरिपेण द्वारा बनवाये गये हैं जो ऐसे जान पड़ते हैं जैसे पृथ्वीके अलंकार हो, या अविचल शिव-शाश्वत सुख हो ॥२|| __[३] इस प्रकार हरिषेणकी कहानी सुनते हुए उसने सम्मेद शिखरकी ओर प्रस्थान किया । इतनेमें एक भीषण शन्द हुआ जो रामसों की सेनाके लिए सन्तापदायक था। उसने इस्तप्रहस्तको भेजा, वे दौड़कर गये और एक वनगज देखकर वापस आये। उन्होंने कहा, "देवदेव, जिसने महाशब्द किया है, वह मदवाला ऐरावत हाथी है, जो गर्जेनमें भयंकर समुद्र का, जलकण छोड़नेमें महामेघोंका, कीचड़में नव वर्षाकालका, निर्झरमें विशाल पर्वतोंका, पेड़ोंको उखाड़ने में दुर्चात ( तूफान) का, सुभटोंके विकासमें यमराजका, काटनेमें दन्तविष महा. नागका और विभिन्न मदावस्थाओं में कामदेवका अनुकरण करता है ।।१-८॥
धत्ता-इस महागजके कन्धेपर इन्द्र भी नहीं चढ़ सका, वह इसके चारों ओर घूमकर उसी प्रकार चला गया जिस प्रकार निर्धन व्यक्ति कामिनीजनके आस-पास घूमकर चला जाता है ।।२।।
[४] और यह उत्पन्न हुआ है साहारण देशके दशार्ण काननमें चैत्र माहमें । यह चौरस सर्वांग सुन्दर, भद्र हस्ति है । यह सात हाथ ऊँचा, नौ हाथ लम्बा और दस हाथ चौड़ा है। इसकी सूड़ तीन हाथ लम्बी हैं । दाँत चिकने, आँखें मधुकी