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दसमो संधि जाफर धनदसे कहा, "मालिको इतना अहंकार है कि एक तो उसने घेरा डाल दिया है और दूसरेको भी उकसाया है।" यह सुनकर धनद तैयार होकर निकला, मानो स्वयं सहस्रनयन निकला हो। वह इंडकर जबतक गुंजागिरिपर डेर। डालता है, तबतक राक्षसोंकी सेना वहाँ आ पहुंची ।।१-८11_
घसा-युद्धके नगाड़े बज उठे। अमर्ष और हर्षसे विशिष्ट कोलाहल होने लगा। वैश्रवण और रावण दोनोंकी सेनाएँ युद्ध में भिड़ गयीं ॥५॥
१०] किसीने गजघटाका उसी प्रकार आलिंगन कर लिया, जिस प्रकार अच्छा विलासी वेश्याका आलिंगन कर लेता है। गजघदा भी किसीके उरतलमें घाव कर देती है, मानो विपरीत सुरतिमें हृदय ले रही हो। किसीने तलबारसे आघात किया,
और हाथीका सिर कटकर धरतीपर गिर पड़ा। किसीने किसीपर गदेसे आघात किया और रथ तथा सारथिके साथ चूर्ण-चूर्ण कर दिया। किसीने किसीके वक्षको तीरोंसे भर दिया, वह ऐसा दिखाई देता है, मानो उसने रोमांच धारण किया हो। युद्धमें किसीने किसीके ऊपर चक्र छोड़ा, वह उसके वक्षपर ऐसे स्थित होकर रह गया, मानो दुष्टका वचन हो । इस बीच युद्ध में खिन्न न होते हुए रावणको ललकारा, "ले तुझे लड़नेका इतना समय है, तू सिंहकी दाढोंके बीच में अभी ही पहुँचता है" ॥१-८||
पत्ता- यह सुनकर कुपितमन, रावण वैश्रवणसे रेसे आ भिड़ा जैसे अपनी सूंड़ उठाकर, गरजकर और गुल-गुल आवाज करते हुए महागज दूसरे महागजसे भिड़ गया हो ।।२। ___ [१५] अपनी मेघलीलाका प्रदर्शन करते हुए दशाननने तीरोंका मण्डप तान दिया, सब दिनकर-अस्त्रसे उसका निवारण कर दिया गया, इससे यह सन्देह होने लगा कि दिन है या