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णवमो संधि
[५] जब रावणने यह कण्ठा पहना, तो परिजनों ने उसे बधाई दी। रत्नाव और फेकशी दोनों दौड़े, वे आनन्दसे कहीं भी फूले नहीं समा रहे थे। यह सुनकर इच्छुरव आय. किकिंध, और पल्ला सहस सूर्यरस आया। रूपने अलंकारों से सहित उसे देखा कि उसकी दस गरदनोंपर दस सिर उगे हुए हैं। उन्होंने सोचा, “यह सामान्य आदमी नहीं है, यह निश्चय से चक्रवर्ती है । इसके पास विपुल राज्य है और राक्षसोंकी अतुल सेना है, इसके पास इन्द्र का क्षत्र है, यम, वरुण और कुबेर की जीत नहीं है" ॥१-७॥ ___ घत्ता-एक दिन वह ऐसा गरजा, जैसे नवपावस में मेघसमूह गरजता है । आकाशमें वैश्रवण को जाते हुए देखकर उसने माँ से पूछा, "यह कौन है" ? |८||
[६] यह सुनकर, अपनी आँखें बन्द करके, गद्गद वाणीमें यह बोली, "इसकी माँ कौशिकी है, जो मेरी बड़ी बहन है। विद्याधर विश्वावसु इसका पिता है। यह चैश्रवण तुम्हारा भाई ( मौसेरा) है। शत्रुओंसे मिलकर इसने अपना मुंह कलं. कित कर लिया है, अपनी माताके समान क्रमागत लकानगरीका इसने अपहरण कर लिया है । इसको उखाड़कर, मैं स्त्रीके समान कत्र राज्यश्री मानूगी ?" तब रक्तकमलके समान जिसकी आँखें हो गयी है, ऐसे विभीषणने माँको बुरा-भला कहा, "वैश्रवणकी क्या श्री है ? दशाननसे अनोखी श्री किसने की है ? थोड़े ही दिनों में हमारे दैवके प्रसन्न होनेपर तुम देखोगी ? ॥१-८॥ ___घत्ता-यम, स्कन्ध, कुबेर, पुरन्दर, रवि, वरुण, पवन, शिखी ( अग्नि ) और चन्द्रमा, प्रतिदिन राक्षसोंको रुलानेवालं रावणके घरमें सेवा करेंगे। ।।९।।