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णवमो संधि
१४. राजा रत्नाश्रवने कहा, "हे धन्ये, तुम्हारे तीन पुत्र होंगे ? उनमें पहला, युद्ध में भयंकर, जगके लिए कण्टकस्वरूप, देवताओंसे विग्रहशील और अर्धचक्रवर्ती होगा । नषसुरतिके सुखका उपभोग करते और परितोषसे कहीं न समाते हुए, उन दोनोंके, अतुल बल प्रारोहकी तरह लम्बी भुजाओवाला दशानन उत्पन्न हुआ। पुट्ठोंसे परिपुष्ट और विशाल वक्षःस्थलवाला वह ऐसा लगता कि जैसे स्वर्गसे कोई देव झ्युत होकर आया हो ! फिर भानुकर्ण, चन्द्रनखा, और फिर गुणसागर विभीषण उत्पन्न हुए ॥१-८
घत्ता--कभी कोई बात उदाता झुअः, सी साँपोंके मुखौंको करतलसे छूता हुआ, रावण इन लीलाओंसे क्रीड़ा करता है, मानो काल ही बालरूप धारणकर घूमता हो।९||
[४] खेलता हुआ वह भण्डारमें प्रवेश करता है, जहाँ तोयदवाहनका हार रखा हुआ था। जिसके मणियोंसे जड़े हुए नौ मुख थे, जो मानो नवग्रहों की कल्पना करके बनाये गये थे। वह हार विषैले और क्रोधसे भरे हुए नागोंसे रक्षित था। कठोर कान्तिसे युक्त वह दुष्ट कण्ठा, दूसरे सामान्य जनका वध कर देता । परन्तु वह रावणके हाथमें आकर वैसे ही आ लगा, जैसे सुमित्रके सामने आनेपर मित्र उससे मिलता है। उसने जसे पहन लिया, जिसमें उसके इस मुख दिखाई दिये, मानो प्रह-प्रतिविम्य ही प्रतिष्ठित हुप हो, मानो चलते-फिरते कमल हों, मानो कृत्रिम कामिनी मुख हों, जो वोलते समय बोलने लगते, और हंसते समय हँसने लगते ॥१-दा। ___पत्ता-स्थिर तारों और चंचल लोचनोंवाले उन दसमुखोंको देखकर लोगोंने उसका नाम दसमुख रख दिया, वैसे ही जैसे सिंहका नाम पंचानन प्रसिद्ध हो गया ॥२॥