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जवमी संधि
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पत्ता - अरे पुत्रो, तुम प्रतिरक्षा नहीं करते, जो हमने तुम्हें पाला-पोसा और बड़ा किया, वह हमारा सब क्लेश व्यर्थ गया, वैसे ही जैसे पापीमें धर्मका व्याख्यान ॥ ९ ॥
[११] जब किसीने भी उन्हें सहारा नहीं दिया, तब उन तीनों को यक्षने मार डाला । फिर उन तीनों को उसने ऐसा दिखाया कि श्मशान में शृगालोंके द्वारा वे खाये जा रहे हैं । इससे भी उनका स्थिर ध्यान विचलित नहीं गया। तहस रावणका सिर काटकर, अविचल मन भानुकर्ण और विभीषण के सामने फेंक दिया। रुधिरसे लाल उस सिरको देखकर उनका मन थोड़ा-थोड़ा ध्यानसे विचलित हो गया। उनकी स्निग्ध शुद्ध और स्थिर देखनेवाली आँखें थोड़ी-थोड़ी गीली हो गयीं । उनके भी दुख उत्पन्न करनेवाले सिररूपी कमलोको ले जाकर रावणको दिखाया मानो मृणालसे रहित कमल ही हों ||१८||
बत्ता - जब भी रावण इस प्रकार अचल रहा, तब देवताओंने साकार किया । उसे एक हजार विद्याएँ उसी प्रकार सिद्ध हो गयीं, जिस प्रकार तीर्थंकरोंको केवलज्ञान उत्पन्न होता है ||१५||
[१२] कहकहाती हुई महाकालिनी आयी । गगन संचालिनी, भानु परिमालिनी, काली, कौमारी, वाराही, माहेश्वरी, घोर वीरासनी, योगयोगेश्वरी, सोमनी, रतन श्राह्मणी, इन्द्रासनी, अणिमा, लघिमा, प्रज्ञप्ति, कात्यायनी, डायनी, उच्चादनी, स्तम्भिनी, मोहिनी, वैरिविध्वंसिनी, भुवनसंक्षोभिणी, वारुणी, पावनी, भूमिगिरिवारुणी, कामसुखदायिनी, बन्धवधकारिणी, सर्वप्रच्छादिनी, सर्वआकपिंणी, विजयजय जिम्भिनी, सर्वमदनाशिनी, शक्तिसंबाहिनी, कुडिलअवलोकिनी, अग्नि-जल स्तम्भिनी, छिन्दानी, भिन्दनी, आसुरी, राक्षसी, वारुणी, वर्षिणी, दारुणी, दुर्निवारा और दुर्दर्शिनी ॥ १-८ ॥