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नवमी संधि
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[७] एक दिन तीनों भाई अपने पितासे पूछकर, भीषण भीम वनमें गये जहाँ हजारों भीषण यक्ष थे, जहाँ खूनसे लाल सिंहोंके पदचिह्न थे, जहाँ अजगरोंके सांस लेनेपर बड़े-बड़े पेड़ों के साथ शाखाएँ हिल उठती थीं । जहाँ शाखाओंसे लटके हुए जोर-जोर से हिलते हुए अनिष्ट नाम है। उस भीषण वनमें विद्याओंके लिए, मनमें ध्यान धारण करके बैठ गये। जो आठ अक्षरों वाली सर्व कामनारूप प्रसिद्ध विद्या थी, वह दो प्रहरों में हो उनके पास आ गयी, मानो दयिता ही प्रगाढ़ आलिंगन में आ गयी हो । फिर उन्होंने सोलह अक्षरोंवाली विद्याका ध्यान किया, दस करोड़ किया |१८|| धत्ता - वे तीनों भाई अविचल ध्यानमें रत थे, रावण, विभीषण और भानुकर्ण । बनमें उन्हें एक यक्ष सुन्दरीने इस प्रकार देखा जैसे जिनवाणीने तीनों लोकों को देखा हो ||९||
[८] जैसे ही यक्षिणीने रावणको वनमें देखा, कामका बाण उसके हृदय में प्रवेश कर गया। वह उससे कहती है, “बुलाये जाने पर भी तुम क्यों नहीं बोलते ? क्या तुम बहरे हो, या तुम्हारे पास मुख नहीं हैं, तुम क्या ध्यान कर रहे हो ? अक्षसूत्रकी माला क्या फेरते हो, मेरे रूप-जलका पान करो।” घरन्तु रावणमें अपनी बातका प्रसार न पाकर वह व्याकुल हो गयी । मनमें खेद करते हुए उसने अपने कोमल कर्णफूलके नीलकमलसे उसे वक्ष में आहत किया। खिले हुए कमल के समान मुखवाली एक और वरांगनाने कहा, "क्या तुम इस आदमीको सचमुचका जानती हो, किसीने यह लकड़ीका आदमी बनाया है।" फिर उसने जाकर, रणरस से युक्त अनर्द्धित यक्षसे कहा ॥१-८||
घत्ता - " कटिसूत्र और केयूर धारण करनेवाले तुम्हें तृणके बराबर मानते हुए, तीन आदमी विद्याकी आराधना करते हुए ऐसे स्थित हैं, जैसे विश्वरूपी भवनके लिए खम्भे बना दिये गये हों।”