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सप्तमो संधि
यह वनमें दावानलकी तरह युद्ध में भिड़ गया,वह जहाँ पहुँचता, वहीं विनाश मच जाता। उस युद्ध में क्रोधसे भरे हुए अन्धकने विजयसिंहका काम तमाम कर दिया ॥१-८॥
धत्ता-तलवारसे कटा हुआ उसका सिर धरती पर ऐसा दिखाई देता है मानो हंसने कमल तोड़कर छोड़ दिया हो ॥९॥
[६] क्षुद्र विजयसिंहके मारे जाने, और सेनारूपी समुद्रका पार पाने के बाद, प्रसन्नमुख सुकेश इस प्रकार कहता है, “हे देव, श्रीमालाको लेकर लें।" इन सान्दोंमे पुललित शरीर वे गये
और आधे क्षणमें किष्किन्ध नगर जा पहुंचे । यहाँपर भी किसीने दुष्टोंका नाश करने में प्रमुख अशनिवेगसे जाकर कहा, "हे परमेश्वर, शत्रुराजाओंमें श्रेष्ठ विजयसिंहको, जो प्राणोंसे सेवा करता है, प्रतिचन्द्रके पुत्र कपिध्वजी अन्धकने यमके मुंहमें पहुँचा दिया है।" यह वचन सुनकर अशनिवेग बिना किसी खेदके तैयार होकर दौड़ा और विद्याधरोंकी चतुरंग सेनासे छलपूर्वक उसके नगरको घेर लिया ।।१-८॥
घत्ता- उन दोनोंको ललकारा, "अरे पापी कपिध्वजी किष्किन्ध और अन्धक निकलो, तुम्हारा काल आ पहुँचा है"||९||
[७] उसके बाद तमतमाते हुए मुखवाले विद्युदाहनने ललकारा, "अरे, जिस प्रकार तुमने मेरे भाईको मारा है उसी प्रकार तुम मेरी दुर्धर तीरोंकी बौछार झेलो।" यह सुनकर प्रतिचन्द्र के दुर्दशनीय पुत्रोंने निकलकर, जिसका प्रताप लोगोंको विदित है, ऐसी समूची सेनाको यहाँसे वहाँ छान मारा। अशनिवेग अन्धककी ओर बढ़ा। विशुद्वाहनने किष्किन्धको स्खलित किया, वे भयंकर अस्त्रोंसे प्रहार करने लगे । क्षणमें आग्नेय अस्त्र, और क्षणमें वारुणास्त्र । क्षणमें पवनास्त्र, क्षण, स्तम्भन अस्त्र, झणमें व्यामोहन और सम्मोइन । क्षणमें