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सार
१२९ घेर लिया जैसे महामेघोंने महीधर श्रेणीको घेर लिया ह । मानो प्रौढ़ विलासिनीको कामुकोंने, मानो कमलिनीको भ्रमरोंने। वेगसे आपूरित वे कोलाहल करने लगे, सूर्यक्रोंने नगाड़े बजा दिये । शंखधारियोंने शंख और तालवालोंने ताल । चारों
ओरसे योद्धाओंका कोलाहल उठा। चमकता हुआ लंकानरेश दौड़ा, युद्ध में सेनामें हलचल मचाता हुआ ॥१-८॥
घत्ता-निर्घात हर्षित होकर सालिसे इस प्रकार भिड़ गया जिस प्रकार मत्त गजेन्द्र सिंहके सामने आ जाये ॥५॥
[१४] दोनों आपसमें प्रहार करते हैं, तस्वरोंसे, पाषाणोंसे, गिरिवरोंसे, भीषण सर्प, गरुड, कुम्भी और सिंह आदि नाना विद्यारूपोंसे, भयंकर तीरोसे, (जो भुजगेन्द्र के आयामकी तरह दीर्घ थे), महारथ छय और वजोंको उसी तरह छिन्न-भिन्न कर देते हैं जिस प्रकार वैयाकरण व्याकरणके पदों को। इसी बीच राक्षस और इन्द्राणीका पुन मालिने अपना रथ हाँकफर, आकाशमें सौ बार घुमाकर निर्घातको तलवारसे आहत कर, यमके मुखमें डाल दिया। निर्घात आहत होकर निर्घातकी तरह ही धरतीपर गिर पड़ा, आकाश में देवता सन्तुष्ट हुए, चारोंने पराभवका कलंफ धो डाला। उन्होंने जय-जय शब्दके साथ लकानगरीमें प्रवेश किया ||१-८|| ___घसा-शान्तिनाथ मन्दिरमें जाकर उन्होंने वन्दना-भक्ति की, और सुविलासिनीकी तरह लंकाका स्वयं उपभोग करते हुए वे वहीं बस गये ।।२।।