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खट्रो संधि पत्ता-"सभी चरमशरीरी, सभी सरल चित्त मानो सिद्धरूपी वधूसे विवाह करनेके लिए पर ही निकल पड़े हो ॥९॥
१६ ] इसके अनन्तर राजा आनन्दित हो उठा। उसने सुरन्त उसे ऋषि संघकी वन्दना की। उसने प्रणाम करते हुए कहा, "भव्यरूपी कमलोंके लिए दिवाकर और भवसंसारके महासमुद्रका नाश करनेवाले हे स्वामी, कृपाकर मुझे प्रव्रज्या दीजिए" । साधु बोले, "हे लंकेश्वर ! बहुत अच्छा, तुम आठ दिन और जीनेवाले हो, इसलिए जो ठीक समझो वह तुरन्त कर लो"। वह भी आधे पलमें ही प्रश्नजित हो गया। आठों दिन उसने लेतनाका शान मथा दाम दिलमाया, लाड़ों दिन पूजा निकलवायी, आठों दिन प्रतिमाका अभिषेक किया, आठों दिन आराधना पढ़ी और इस प्रकार परमपदका ध्यान कर वह मोक्षको प्राप्त हुआ॥१-८॥
घत्ता- उस महारक्षका बलवान पुत्र देवरक्ष गद्दोपर बैठा और इन्द्र के समान लंकाका स्वयं उपभोग करने लगा ।।।
छठी सन्धि अनन्त परम्परामें चौसठ सिंहासन बीत जानेके बाद कीर्तिधवल उत्पन्न हुआ, जिसने अपनी कीर्तिसे भुवनको धवल कर दिया। जैसे पहला तोयदवाहन, तोगदवाहनका पुत्र महरक्ष । महरक्षका पुत्र देवरक्ष । देवरक्षका पुत्र रक्ष । रक्षका पुत्र आदित्य | आदित्यका पुत्र आदित्यरक्ष । आदित्यरक्षका