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चस्यो संधि
कोई विज्ञान और आभरण लाती हैं |1१-१८॥ ___ पत्ता-चर्म, चक्र, सेनापति, हय, गज, गृहपति, छत्र, दण्ड, नैमित्तिक, कागनी, मणि, स्पादि स्त्रग और परोहित मन चौदह रत्नौका भी उसने चिन्तन किया ॥११॥
[७] जैसे ही कूच करके भरत गया, वैसे ही सन्देशबाहकोंने छोटे भाईसे कहा, "हे देव, शीघ्र तैयार होकर निकलिए । प्रतिपक्ष समुद्र की तरह दिखाई दे रहा है।" यह सुनकर पोदनपुरनरेश याहुबलि क्रोधके साथ तैयार होने लगा। पटपटह बजा दिये गये। शंख फूक दिये गये, असंख्य ध्वज दण्ड और छत्र उठा लिये गये, कोलाहल होने लगा, शस्त्र ले लिये गये, सेनाएँ हाथोंसे प्रहार करने लगी, क्षुब्ध कर देनेवाली सात सेनाएँ निकली, एफमें एक अक्षौहिणी सेना थी। भरतेश्वर और बाहुबलि, दोनों ही, निकट पहुँचे, दोनों सेनाएँ भी। आमने-सामने वजपटोंपर ध्वज देकर। घोड़ोंसे घोड़े, महागजोंसे महागज, योद्धासे योद्धा, महारथोंसे महारथ ॥१-९॥ __ घता-बढ़ रहा है हर्ष जिनमें, कंचुक और कवचसे विशिष्ट ऐसी दोनों सेनाएँ, युद्ध में हाँक देती हुई, एक-दूसरे को ललकारती हुईं, देवासुर सेनाओंकी तरह एक-दूसरेसे भिड़ गयीं ॥१०॥
[८] भरतेश्वर और बाहुबलिकी सेनाएँ भिड़ गयीं, कोलाहल होने लगा, रथ हाँक दिये गये। हाथी प्रेरित किये जाने लगे। लगातार अस्त्र छोड़े जाने लगे। जीर्ण जोते (रथोंकी ) कट गयीं, धुरे टुकड़े-टुकड़े हो गये, नितम्ब कद गये, उर टुकड़े-टुकड़े हो गये, भुजाएँ कट गयीं, सिर गिरने लगे, कन्धे काँपने लगे, कबन्ध नाचने लगे। गजवन्तोंके प्रहारसे योद्धा छिम-भिन्न हो गये, भटोंमें धक्का-मुक्की होने लगी। प्रतिप्रहारसे गजघटा धरतीपर गिरने लगी। ध्वजपट गिरने