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पनमो संधि वृत्तान्त उसे बताया। उसके पीछे जो दुश्मन लगे हुए थे, वे लौटकर अपने राजाके पास गये ||१-दा।
पत्ता-उन्होंने कहा--"देव, तोयदवाहन अपने प्राण लेकर भाग गया, वह समबसरगमें उसी प्रकार चला गया है जिस प्रकार सिद्धालयमें सिद्ध चले जाते हैं" ||२|
[७] यह सुनकर राजा सहस्त्रनयन क्रोधसे जल उठा, मानो आगमें तृणसमूह डाल दिया गया हो। "मर-मर, वह यदि पातालमें भी जाता है जो विषधरभषनके मूल और मेघजालसे युक्त है। यदि वह इन्द्रकी सेवा फरनेवाले दस प्रकारसे भवनवागी देवोमी माग में प्रवेश नगा है, यदि वह स्थिर स्थानवाले व्यन्सर देवॉफी शरणमें जाता है, यदि वह दुर्वार पाँच प्रकारके ज्योतिषदेवोंको शरणमें जाता है, कल्पवासी देव आहमेन्द्र, वरुण, पवन, वैश्रवण और इन्द्रकी झरणमें जाता है, सो भी यह मुझसे मरेगा, यह प्रतिक्षा करके सामनयन यहाँसे कूच करता है। जिनेन्द्रका मानस्तम्भ देखकर, राजाका मान मत्सर गल गया । उसने भी जाकर, समवसरणमें प्रवेश किया, जिनभगवानको प्रणाम कर सामने बैठ गया। वहाँ दोनोंके जन्मान्तर बताये गये, दोनोंसे पिताका और छुड़वाया गया ॥१-१०॥
घता-तब अभिनय प्रसाधनसे युक्त सोयदवाहनका भीम सुभीमने पूर्वजन्मके स्नेहके कारण आलिंगन किया ॥२०॥
[८] भयंकर योद्धाओंका भंजन करनेवाले भीमने कहा, "तुम जन्मान्तर में मेरे पुत्र थे। जिस प्रकार उस समय, उसी प्रकार इस समय भी तुम मुझे प्यारे हो।" उसने उसे बार-बार सौ बार चूमा । विना किसी विचारके यह कामुक विमान लो,
और हार के साथ, यह राक्षसविद्या भी, और समुद्रसे घिरी हुई, जिसमें प्रवेश करना कठिन है, जो देवदाओंकी पहुँचसे