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पढमो संधि
[९] मगधराज अपने दोनों हाथ सिररूपी शिखरपर घढ़ाकर ( सिरके ऊपर रखकर ) फिर बन्दना करने लगा,"नाग, नरेन्द्र और सुरेन्द्रने जिनकी सेवा की है, ऐसे सब देवोंके अधिदेव नाथ, आपकी जय हो। आठ प्रकारके परम गुण और ऋद्धिको प्राप्त करनेवाले, तथा जो त्रिभुवनके स्वामी हैं और जिनके पास तीन प्रकारके छत्र हैं, ऐसे आपकी जय हो । कामको नष्ट करनेवाले नष्ट नेह, जिनका शरीर केवलज्ञानसे परिपूर्ण है, ऐसे आपकी जय हो । बत्तीस प्रकारके सुरेन्द्रोंने जिनका अभिषेक किया है, जन्म-जरा और मरणरूपी शत्रुओंका जिन्होंने अन्त कर दिया है, ऐसे आपकी जय हो । देवताओंके मुकुटोंके करोड़ों मणियोंसे जिनके चरण घर्षित हैं, ऐसे परमश्रेष्ठ वीतराग आपकी जय हो । आकाशकी तरह स्वभाव. वाले, अक्षय, अनन्त, तथा सब जीवोंके प्रति करुणाभाव रखनेवाले आपकी जय हो।" इस प्रकार तल्लीन मन होकर तथा जिन भगवानको प्रणाम कर, राजा श्रेणिकने गौतमगणधरसे पूछा ।।१-८॥ ___घत्ता हे परमेश्वर, दूसरे मतोंमें रामकी कथा उलटी सुनी जाती है, जिनशासनमें वह किस प्रकार है, बताइए ? ॥५॥
[१०] दुनियामें चमत्कारवादी और भ्रान्त लोगोंने भ्रान्ति उत्पन्न कर रखी है । यदि धरतीकी पीठ कछुएने उठा रक्खी है तो तिरते हुए कछुएको फोन उठाये है ? यदि रामके पेटमें त्रिभुवन समा जाता है तो रावण उनकी पत्नीका अपहरण कर कहाँ जाता है ? और भी हे देव, खर-दूषणके युद्ध में यदि स्वामी युद्ध करता है, तो उससे अनुचर कैसे शुद्ध होता है ? सगे भाई सुनोचने स्त्रीके लिए अपने भाई बालीको किस प्रकार मारा ? क्या वानर पहाड़ उठा सकते हैं, समुद्रको बाँधकर पार कर सकते हैं ? क्या रावण दसमुख और बीस हाथोंवाला था?