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तईओ संधि
। पताकाएँ थीं। जैसे ही यह समवसरण बनकर तैयार हुआ वैसे
ही अमरराजने कूच किया । अहमिन्द्रों, नागेन्द्र, नरेन्द्र और देवेन्द्रोंके आसन चलायमान हो गये ।।१-५॥
घसा-इन्द्र देवोंको जिनवरकी सम्पदा बताता हुआ । कहता है कि "बैठे क्या हो, आओ, आदरणीय जिनवर की अन्दनाके लिए चलें" ॥१०॥
[५] कटक, मुकुट और कुण्डल धारण करनेवाले प्रमुख देवोंने जब यह सुना तो चे मणियों और रलोकी प्रभासे रंजित अपने-अपने यान सजाने लगे। कोई मेष, महिप, वृषभ और हाथीपर | कोई तक्षक, रीछ, मृग और शम्बरपर । कोई करभ, पराह और अश्वपर । कोई हंस, मयूर और पक्षीपर | कोई शशक, श्रेष्ठ हिरण और पानरपर । कोई रथवर, नरवरोंपर । कोई बाध,गज और गडेपर । कोई गरुड़, क्रौंच और कारण्डबपर । कोई शुंशुमार और मत्स्यपर। इस प्रकार सभी सुरवर यहाँ पहुँचे। दस प्रकारके भवनवासी देव, आठ प्रकार के व्यन्तर, पाँच प्रकारके ज्योतिषी देव । अनेक प्रकारके कल्पवासी देव बुला लिये गये, ईशानेन्द्र भी तत्काल आ गया, विभ्रम हावभावसे क्षोभ उत्पन्न करनेवाली चौबीस करोड़ अप्सराओंसे घिरा हुआ ॥१-९।।
पत्ताचार निकायोंकी कोलाहल करती हुई सेनाको देखकर, इन्द्रराजके दण्ड धारण करनेवाले आदमी दौड़े ॥२०॥
[६] इतनेमें, जिससे मदजलका निझर बह रहा है, जो कानसे भ्रमरोंको उड़ा रहा है और जिसका मन जिनभगवान् की वन्दनाके लिए व्याकुल था, ऐसा ऐरावत महागज आगे बढ़ा । वह एक लाख योजन प्रमाण था, जैसे दूसरा मन्दराचल ही परिस्थित हो, ऊपर प्रदर्शन प्रारम्भ हो गये। स्वर्ण निर्मित तोरण बाँध दिये गये । ध्वज उतार दिये गये, चिह्न हिलने लगे।