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नईओ संधि
है।" यह सुनकर विभीने कहा, "हे देव, मैंने सब कुछ देख लिया है, जो भरतेश्वरके पिता सुने जाते हैं, और जिनकी महीवल्लभ कहकर स्तुति की जाती है, उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, वह आठ महान् गुणों और ऋद्धियोंसे सम्पूर्ण हैं।" यह सुनकर, और अभिमानसे मुक्त होकर राजा ऋपभसेन सेना और बन्धुवर्ग के साथ चला । वह शीघ्र उस समवसरण में, देवाधिदेवकी जय बोलता हुआ पहुँच गया ॥१-९॥
घत्ता-तेजके साथ प्रवेश करते हुए उस राजाने देवोंको भी विभ्रममें डाल दिया, कि इस बेशमें कामदेव किस संकल्पसे यहाँ आया है ? ॥2014
[१०] वह देवागमन, वह जिन और वह समवसरण देखकर संसारके सैकड़ों भन्योंसे आकुल ऋपभसेन राजाने संन्यास ग्रहण कर लिया। उसके साथ, अत्यन्त गर्वीले चौरासी राजाओंने दीक्षा ले ली, जो चार कल्याणोंकी विभूतिसे युक्त जगके स्वामी परम जिनके गणधर बने | और भी अपने अपने भात्रके अनुसार चौरासी हजार नरवर प्रजित हुए, जो ग्यारह गुणस्थानों से समृद्ध श्रे, तीन लाख प्रसिद्ध श्रावक, आर्यिकागणकी संख्या कौन जान सकता है, पापकर्मके मलसे रहित देवता भी, परम जिनेन्द्र के चारों ओर इस प्रकार स्थित थे, जैसे पूर्णचन्द्र के आसपास तारा और नक्षत्र हो । वनचर भी अपना बैर भूलकर स्थित श्रे, महिप, तुरंग, सिंह और गज ॥१-८॥ ___घत्ता-साँप और नेवला सभी उपशम भाव धारण कर एक जगह स्थित हो गये, कृतसेव पुरदेव ऋपभ जिनके केवलज्ञानके प्रभावसे ।।२।।
[११] इतने में दिव्यध्वनि निकलनी शुरू हुई। त्रिलोकके महामुनि कहते हैं, "बन्धन-मोक्ष, काल-बल, धर्म-अधर्मका