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सईलो संधि
[८] रोमांचसे अत्यन्त पुलकित शरीर इन्द्र ऐरावतके कन्धेसे उतर पड़ा और उसने अपने परिवारके साथ स्तुति प्रारम्भ की "हे, अजर-अमर लोकके स्वामी, आपकी जय हो, आदिपुराणके परमेश्वर जिन, आपकी जय हो । दयारूपी रत्नके लिए रत्नाकरके समान, आपकी जय हो । अज्ञानतमके समूहके लिए दियाकरके समान, आपकी जय हो, भन्यजनरूपी कुमुदोंको प्रतियोधित करनेवाले आपकी जय हो, फल्याण गुणस्थान और शानपर आरोहण करनेवाले आपकी जय हो, हे बृहस्पति, त्रिलोकपितामह, आपकी जय हो, संसाररूपी अटवी के लिए दावानलकी तरह आपको जय हो, कामदेवका भयान करनेवाले महायु, आपकी जय हो, कलिकी क्रोधरूपी ज्याला शान्त करने के लिए पावसकी तरह, आपकी जय हो, कषायरूपी मेघोंके लिए प्रलयपचनकी तरह, आपकी जय हो, मानरूपी पर्वतके लिए इन्द्रयरके समान, आपकी जय हो, इन्द्रियरूपी गजसमूहके लिए सिंह के समान, आपकी जय हो, त्रिभुवनशोभारूपी रामाका आलिंगन करनेवाले, आपकी जय हो, कर्मरूपी शत्रुओंका अहंकार चूर-चूर करनेवाले आपकी जय हो, निष्फल अपेक्षाहीन और निरंजन, आपकी जय हो । १-२|| __ पत्ता-तुम्हारा शासन दुःखका नाश करनेवाला है, इस समय यह उन्नतिके शिखरपर है, इसके प्रभावशील होनेपर जग भवचकमें नहीं पड़ेगा ॥१०॥
[९] वह सेवा, यह देवागमन, वह जिनवर, वह समवसरण, (इन सबको ) उपवनमें अवतरित होते हुए देखकर, महान आश्चर्य हुआ, ऋषभसेन नामक राजाको, जो पुरिम. ताल पुरका प्रधान राणा था । उस देवागमको देखकर उसने कहा, "शकटामुख, उद्यान में कौन ठहरा है ? इतना बड़ा प्रभुत्व किसका है, कि जिससे विमानोंके कारण आकाश मुक गया