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पर संधि
[१३] उसी अवसरपर समस्त पृथ्वीके महेश्वर भरतेश्वरको देवोंकी ऋहिके समान ऋद्धि प्राप्त हुई, जिसकी परम्परा शत्रुराजाओं द्वारा भी नमित थी । बेलफल के समान प्रवर और स्थूल स्तनबाली उसकी छियानबे हजार रानियाँ थीं । उनके पाँच हजार पुत्र थे । चौरासी लाख रथ, चौरासी लाख गजघर, अठारह करोड़ अश्वबर, वत्तीस हजार राजा, बत्तीस हजार मण्डल. खतीक लिए एक करोड़ हट, नौ निधियाँ, चौदह रत्न, छह खण्डोंकी एकछत्र धरती ॥१-७। __घत्ता—जिस प्रकार पिताने गौरव के साथ केवलज्ञान प्राप्त किया उसी प्रकार पुत्रने जूझते हुए अपने हाथोंसे धरती प्राप्त की।
चौथी सन्धि
जयकी आशासे पूर्व साठ हजार वर्षकि बाद भरत अयोध्यामें प्रवेश करते हैं। परन्तु नया और पैनी धारवाला कलहप्रिय उसका चक्ररत्न प्रवेश नहीं करता।
[१] चकारत्न नगर में प्रवेश नहीं करता, जिस प्रकार अज्ञानीमें सुकनिकी वाणी, जिस प्रकार ब्रह्मचारीके मुख में कामशास्त्र, जिस प्रकार गोठप्रांगणमें मणि रत्न और वस्त्र, जिस प्रकार वारके खूटेमें गजसमूह, जिस प्रकार दुर्जनोंक बीच सज्जनसमूह, जिस प्रकार कृपणके घर भिक्षुकसमूह, जिस प्रकार शुक्ल पक्ष में कृष्ण पक्षका चन्द्र, जिस प्रकार