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तईओ संधि
महाफल, पुद्गल जीव और अजीवकी प्रवृत्तियाँ, आश्रच संवरनिर्जरा और गुप्तियाँ, संयम-नियम-लेश्या-त्रत-दान-तप-शीलउपवास, गुणस्थान-सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चरित्र, स्वर्ग-मोक्ष और संसारके कारण, नौ प्रशस्त सन् ध्यान, देवों और मनुष्योंकी मृत्यु और आयुका प्रभाव | सागर पल्य पूर्व और कोड़ाकोड़ी। लोकविभाग कर्मप्रकृतियाँ। काल-क्षेत्र-भाय-परद्रव्य | बारह अंग और चौदह पूर्व, नरक, तिथंच, मनुष्यत्व और देवत्व, कुलकर, बलदेव और चक्रवती । तीर्थकरत्व और इन्द्रत्व और सिद्धत्वका यह संक्षेपमें कथन करते हैं ॥१-९॥
पत्ता-बहुत कहनेसे क्या? उन्होंने त्रिभुवनकी खोज कर ली थी, तिल के बराबर भी ऐसा नहीं था कि जिसे जिन भगवान्ने न देखा हो ॥१०॥
[१२] समस्त धर्माख्यान सुनकर और जीवनको मनमें चंचल समझकर, भवभव के सैकड़ों भयोंसे भीतमन सबको उपशमभाव प्राप्त हुआ। किसीने पाँच अणुव्रत लिये, कोई केश लौंच करके प्रत्रजित हो गया, किन्हीने गुणवतोंका अनुसरण किया, किसीने शिक्षाबत लिये, दूसरोंने मौन और अनर्थदण्ड व्रत ग्रहण लिया, दूसरोंने दूसरोंसे निवृत्ति ले ली, जो-जो माँगता, वह उसे वह वह देते। आदरणीय जिनने अपना हाथ नहीं खींचा। देव भी सम्यक्त्व ग्रहण करके चले गये अपनेअपने निकायोंके लिए विमानोंपर आरूढ़ होकर। जिन धवल का सिंहासन भी धवल था । पन्द्रह कमलोपर उनका स्थिर आसन था। सफेद तीन छत्र लगे हुए थे; सफेद चामर, दिव्यध्वनि और भामण्डल ॥१-८॥
घसा-कामका नाश करनेवाले, त्रिभुवनके स्वामी और केवलज्ञान विषाकर परम जिन उस उद्यानसे गंगासागरकी ओर गये ॥२॥