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पढमो संधि
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क्या यह इन्द्र के हाथोंको बाँधने में समर्थ था? क्या कुम्भकर्ण आधे वर्ष सोता था, और करोड़ भैसोंका भी अन्न उसे पूरा
नहीं होता था ? ॥२-८|| म. घत्ता-जिसने रावमको समाह करवाया, परखियों के । प्रति जिसका मन अच्छा था, वह विभीषण माँ के समान मन्दोदरीको किस प्रकार पत्नीके रूपमें ग्रहण करता है ? ||९|| ,
[११] यह सुनकर गणधर बोले, “बहुत विस्तारसे क्या, हे श्रेणिक सुनो, पहला समूचा अनन्त अलोकाकाश हैं जो निरपेक्ष निराकार और शून्य है, उसके मध्यमें त्रिलोक स्थित है, जिसका आयाम चौदह राजू प्रमाण है ? उसमें भी डमरूके मध्य आकारके समान और एक राजू प्रमाण तिर्यक् लोक है। उसमें, एकलाख योजन विस्तारवाला महा प्रमुख जम्बूद्वीप है। जिसमें चार क्षेत्र और चौदह नदियाँ हैं। जो छह प्रकारके कुलपर्वतोंके तटोसे प्रकाशित हैं। उसके भी भीतर सुमेरु पर्वत है, जो एक हजार योजन गहरा, और निन्यानवे हजार योजन ऊँचा है। उसके दक्षिणभागमें भरत क्षेत्र स्थित है, छह खण्डोंसे विभूषित उसका एक चक्रवर्ती राजा है ।।१-८॥
घसा-उसमें अवसर्पिणी कालके बीतनेपर, कल्पतरू उच्छिन्न हो गये और चौदह विशेष रत्नोंके समान चौदह कुलकर उत्पन्न हुए ||९||
[१२] पाला श्रुतिवन्त प्रतिश्रुत राजा, दूसरा सन्मत्तिवान् सम्मति, तीसरा कल्याण करनेवाला क्षेमकर, चौथा रणमें दुर्धर क्षेमन्धर, पाँचवाँ विशालबाहु सीमंकर, छठा धरणीधर सीमन्धर, सातवाँ चारुनयन चक्षुष्मान् । उसके समयमें एक विस्मयकी बात हुई। सहसा सूर्य और चन्द्रमाके दिखनेसे सभी लोग अपने मनमें आशंकित हो उठे, ( उन्होंने कहा )," कुलकर श्रेष्ठ परमेश्वर भट्टारक ! हमें कुतूहल हो रहा है।"