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बिईको संधि
पीन है, और जो चन्द्रमाकी तरह कोमल हैं, ऐसी इन्द्रकी महादेवी इन्द्राणी सबलोगोंको मोहित कर तथा माँ के आगे मायावी बालक रखकर तीन लोकोंके परमेश्वर जिनको वहाँ ले गयी, जहाँ इन्द्र अपने परिवार के साथ था ॥१-८॥
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पत्ता - देवोंने शीघ्र ही, भगवान्के श्रीचरणोंपर अपनी विशाल दृष्टि भक्ति से इस प्रकार फेंकी, जैसे पूजाके योग्य नील कमलोंकी माला ही हो ||२||
[३] बाल कमलके दलोंके समान कोमल बौद्दोंवाले, त्रिभुवननाथको इन्द्रने गोदमें ले लिया, और अरुण बाल दिवाकरके सामने उन्हें यह सुमेरु महीधरकी ओर ले चला । बहाँसे सात सौ छियानवे योजन दूर तारागणों की पंक्ति थी, उसके ऊपर दस योजनकी दूरीपर सूर्य, फिर अस्सी लाख योजन की दूरीपर चन्द्रमा, फिर चार योजनकी दूरी पर नक्षत्रोंकी पंक्ति थी । वहाँसे चार योजन दूरपर बुभ्रमण्डल, फिर वहाँसे क्रमशः बृहस्पति शुक्र मंगल और शनि ग्रह हैं । वहाँसे अट्ठानवें हजार योजन चलकर तथा एक सौ योजन और चलकर सुरवरोंमें श्रेष्ठ परम आदरणीय ऋषभ जिनको पाण्डुकशिलाके ऊपर सिंहासनपर स्थापित कर दिया गया ॥ १-८||
घत्ता - मन्दराचल पर्वत ( उन्हें ) अपने सिरपर लेकर मानो लोगोंको बता रहा था कि देख लो यह त्रिभुवननाथ हैं या नहीं ||१९||
[ ४ ] अभिषेक के शुरू होनेकी भेरी बजा दी गयी । देवोंके अनुचरोंके हाथोंसे ताडित पटह भी बजने लगे । सफेद शंख फँक दिये गये । कोलाहल होने लगा। किसीने चार प्रकारके मंगेलकी घोषणा की। किसीने स्वर पद और ताल से युक्त गान प्रारम्भ कर दिया। किसीने सुन्दर वाद्य बजाया जो बारह ताल और सोलह अक्षरोंसे युक्त था। किसीने भरत नाट्य