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तईओ संधि वर, पाटली, पोपली, नारिकेल, करमंदी, कंबारी, करिमर, करीर, कनेर, कर्णवीर, मादूर, तरल , श्रीखण्ड, श्रीसामली, साल, सरल, हिन्नाल , ताल, ताली, तमाल, जम्बू, आम्र, कंचन, कदम्ब, भले, देवदारु, रिह, चार, कौझम्ब, सद्य, कोरण्ट, कोंज, अच्चझ्य, जुही, जासवण, मल्ली, केतकी और जातको वृक्षांसे रमणीय था ।।१-१२।। __घता--वहाँ, स्थिर और स्थल सुन्दर
ब ना दिखाई दिया, मानो, सुख देनेशली वनरूपी वनिताके ऊपर मुकुट रख दिया गया हो" ||१३||
[२] आदिपुगणके महेश्वर परमेश्वरने उस स्थानमें स्थिन होकर विपग्ररूपी सेना नए की और अपना शुक्ल ध्यान
ग किया। एक शुक्ल ध्यानकी अग्नि प्रचलित करते हुए, दो गणम्यान और दो प्रकारका तप धारण करते हुए, स्त्रीत्वका बन्ध कराने वाली नीन झल्यों का नाश करते हुए, चार यातिया कर्भीक इंधनको जलाते हुए. पंचेन्द्रिय रूपी दानवका दर्प हरते हुए, वाम प्रकार के रसका परित्याग करते हुए, मात महा'पदोंको परिशप करते हुए, आठ दुष्ट मादीका नादा करते हुए, नी कारक ब्रह्मचर्य की रक्षा करते हुए, इस प्रकार के परम धर्म का पालन करते हुए, ग्यारह अंगोंके शास्त्रको जानते हुए, वाराह अनुप्रक्षाका चिन्तन करते हुए, तेरह प्रकारके चारित्रका आचरण करते हुए, चौदह प्रकारके गुणस्थानों पर चढ़ते हुप, पन्द्रह प्रमाणों का वर्णन करते हुए, सोलह कपायोंको छोड़ते हुए, सत्रह प्रकार के संयमका पालन करते हुए और अठारह प्रकारके दोषोंका नाश करते हुए; ॥१-१॥
घत्ता-शुमध्यान, गतमान और अत्यन्त प्रसन्न मखचन्द्र ऋषम जिनको धवल उज्ज्वल केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ॥११|