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पहमो संधि
यह सुनकर राजाने घोषणा की कि लो अब कर्मभूमि आरम्भ होगी। पूर्व विदेहमें त्रिलोकके लिए आनन्द स्वरूप परम जिनेन्द्रने यह बात मुझसे कही थी॥१-८॥
प्रना-जिसके नबसन्ध्या अरुण पत्ते हैं, और तारागण पुष्प हैं, ऐसे इस अवसर्पिणी कालरूपी वृक्षके ये सूर्य और चन्द्र, फल हैं ? ||५||
[१३] फिर अतुल शक्तिवाले यशस्वी हुए। फिर प्रसिद्ध नाम विमलवाहन, फिर अभिचन्द्र और चन्द्राभ हुए। तदनन्तर मरुदेव, प्रसेनजित् और नाभिराज हुए। उन अन्तिम कुलकर नाभिराजकी मरुदेवी वैसी ही पली थी, जिस प्रकार इन्द्रकी इन्द्राणी। वह चन्द्रमाकी रोहिणीकी तरह सुन्दर और कामदेवकी रतिकी भाँति प्रसत्रनाम थी। वह बिना अलंकारोंके ही सुन्दर शरीर थी, आभरणोंका वैभव उसके लिए केवल भारस्वरूप था, उसका अपना लावण्य था जो उसे इतनी शोभा देता था कि केशरका.रम लेप ( रसोह रसोघ>रसका समूह ) केवल मैल था। प्रस्वेद ( पसीना ) की चमकदार बंदोकी पंक्तिसे वह इतनी सुन्दर थी कि भारी मुक्ताहार उसके लिए केवल भार स्वरूप था। उसके लोचन स्वाभाविक रूपसे विशालदलयाले धे, कमलांकी माला, उसके लिए केवल आडम्बर थी ११-८।।
पत्ता-कमलोंकी आझासे धीरे-धीरे चक्कर काट रहे भ्रमरसमूहसे उसके दोनों पैर रुनझुन करते थे, नूपुरोंकी ध्वनि उसके लिए किस काम की ? |२||
[१४] कुछ दिनों बाद इन्द्र के आदेशसे देवियाँ मानव रूप धारण कर आयीं । चन्द्रमुखी और नीलकमल के. दलकी भाँति आँखोवाली वे थी कीति, बुद्धि, श्री, हो, धृति और लक्ष्मी । सपरिचार वे वहाँ पहुची जहाँ वह आदरणीय मरुदेवी थी। कोई. एक विनोद करती है, कोई पढ़ती है, कोई नाचती हैं, कोई