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मी संधि
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गाती है, कोई बजाती है, कोई अपने हाथसे पान देती हैं, और कोई अपने हाथसे समस्त आभूषण । कोई चामर बुलाती है, कोई पैर धोती है, कोई उज्ज्वल दर्पण लाती है, कोई तलवार उठाये हुए रक्षा करती है, कोई कुछेक आख्यान कहती है; कोई सुगन्धित लेपसे प्रसाधन करती है, कोई उसके शरीरकी मालिश करती हैं ।। १-८||
पत्ता - उत्तम पलंग में सोते हुए (एक रात) उसने स्वप्नावलि देखी ! तीस पक्षोंतक (पन्द्रह माह) रत्नवृष्टि होती रही ! ||२९||
[ १५ ] वह देखती है— मदसे गीले गढस्थलबाला मत्तगज; देखती है— वृषभ, जिसने कमल समूह उखाड़ रखा है; देखती है--बड़ी बड़ी आँखोंवाला सिंह; देखती है- नवकमलों पर बैठी हुई लक्ष्मी देखती है- उत्कट गन्धवाली पुष्पमाला; देखती है मनोहर पूर्णचन्द्र देखती है-किरणोंसे प्रचण्ड दिनकर, देखती है-- घूमता हुआ मीनों का जोड़ा, देखती हैं, जलसे भरा हुआ मंगल कलश, देखती है— कमलोंसे आच्छन्न सरोवर, देखती है— जलनिधि जिसका जलसमूह गरज रहा है। देखती हैशोभादायक सिंहासन । देखती है-वष्टियोंसे मुखरित विमान, देखती है -- अत्यन्त धवल नागालय । देखती है - चमकता हुआ मणिसमूह, देखती है - जलती हुई आग ॥१-८॥
घत्ता - यह स्वप्नावलि सुन्दरी मरुदेवीने देखी, और सवेरे जाकर उसने नाभिराजा से कहा || ९ ||
[ १६ ] उसने भी हँसते हुए इस प्रकार कहा, 'तुम्हारे त्रिभुवन-विभूषण पुत्र होगा, जिसका स्नानपीठ मेरु महापर्वत होगा, पर्वतोंके खम्भोंपर अवलम्बित, आकाशरूपी मण्डप होगा, महासमुद्र जिसके मंगलकलश होंगे । और अभिषेकके समय बत्तीस प्रकारके इन्द्र आयेंगे। उस दिनसे लेकर आधे बरसतक देवोंने रत्नवृष्टि की। शीघ्र नाभिराजाके घर में ज्ञानदेह