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पनमो संधि
आदरणीय ऋषभजिन अवतरित हुए। वह गर्भके भीतर ऐसे स्थित हो गये, जैसे नव कमलिनीके पत्तेपर जलकी बूंद हो। फिर भी, जवना आहारह पक्ष नहीं हुए रजनन रत्नों की वर्ग होती रही। तेजस्वी शरीर जिनरूपी सूर्य, भव्यजन रूपी कमलसमूहको योधित करता हुआ उदित हो गया ।।१-८॥
पत्ता- आदरणीय ऋषभजिन उत्पन्न हुए जो मोहान्धकारका नाश करनेवाले, केवलज्ञानकी किरणोंके समूह स्वयं विश्वके लिए दिवाकर थे॥५॥
इस प्रकार यहाँ धनंजय के आश्रिप्त स्वयम्भूदेव द्वारा रचित, 'जिन जन्म-उत्पत्ति' नामक
पहला पर्व पूरा हुभा ॥१॥