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बड़ी दीक्षाएं, व्रतोचारणे, प्रवर्तक-गणी-पन्यास-उपाध्याय. आचार्यपदार्पणे आदि हुए हैं। तदुपरांत महान छ अंजनशलाकाएं एवं पचास उपरांत प्रभु प्रतिष्ठाएं अभूतपूर्व शासनप्रभावना पूर्वक निर्विघ्न सुसम्पन्न हुई हैं।
ऐसे परम उपकारी पूज्य गुरुदेव आचार्य महागजश्री ने संस्कृत, हिन्दी एवं गुजराती भाषाओं में छोटे बड़े अनेक ग्रन्थों का सर्जन किया है। प्रस्तुत पूर्वाचार्य विरचित 'कुलक संग्रह' प्राकृत ग्रन्थ गूर्जरभाषा युक्त अन्य संस्थाओं द्वारा प्रकाशित हुआ देखकर, हिन्दी भाषा में सरलार्थ तैयार कर प्रकाशित करने की पूज्य आचार्य गुरु महाराजश्री को उन्हीके पट्टधर-शिष्यरत्न मधुरभाषी पूज्य उपाध्याय
श्री विनोदविजयजो गणिवर्य महाराजश्रीने प्रेरणा दी। ___ पूज्यपाद आचार्य महाराजश्रीने गुडाबालोतान् में श्रीसंघ की साग्रह विनन्ति से चातुर्मास रह कर, साहित्य शास्त्र रचना के अनेक कार्य होते हुए भी उसमें से समय निकाल कर सरल हिन्दी भाषा में लिखकर और 'कुलक संग्रह सरलार्थ' नाम रखकर इस पुस्तिका को तैयार की है।
इसका सम्पादन कार्य परम पूज्य आचार्य म० सा० के लघुशिष्यात्न-उत्साही कार्यदक्ष पूज्य मुनिराज श्री जिनो. तमविजयजी महाराजश्रीने किया है।